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184...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण शीतं मारणे चोत्तमं विदुः।।11।। पञ्चेन्द्रियाणां संघट्टे पादमल्पे च तापने। शीतसंतापने गाढे निःपापः परिकीर्तितः।।12।। मारणे पुण्यमाख्यातमेष आद्यव्रते विधिः। स्थले चैव मृषावादे हीने मध्ये तथाधिके।।13।। यतिस्वभावः सजलं निःपापश्च क्रमात्स्मृतः। एवं चौर्यव्रते ज्ञेयं प्रायश्चित्तमसत्यवत्।।14।। प्रायश्चित्तमथाख्येयं श्राद्धानां मैथुनव्रते। गृहीते नियमे स्वस्य कलत्रस्यापि संगमात्।।15।। उपवासव्रतं प्राहुः प्रायश्चित्तं विचक्षणाः। वेश्यायाः संगमादेव शुद्धिर्भद्र उदाहृता।।16।। हीनजातिपरस्त्रीणामज्ञानात्तद्रवे (?) थवा। आदेयं परमं प्राहुः प्रायश्चित्तं मुनीश्वराः।।17।। विशुद्धकुलवध्वाश्च भोगे मूलं यथोदितम्। ग्राह्यं च नरसंभोगे मुक्तं मैथुनचिन्तने।।18।। सुन्दरं निबिडे रागे प्रायश्चित्तमुदीरितम्। स्थूले परिग्रहे हीने मध्यमे परमे तथा।।19।। यतिस्वभावं कामघ्नं चतुःपादं क्रमाद्विदः।
(आचारदिनकर भा. 2, पृ. 249) बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीवों का संस्पर्श होने पर एवं उन्हें अल्पत: संतापित करने पर एकासना का प्रायश्चित्त आता है। इन्हीं जीवों को अत्यधिक परितापित करने पर आयंबिल तथा उन्हें प्राण रहित कर देने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• पंचेन्द्रिय जीवों का संस्पर्श होने पर एकासन, उन्हें अल्प तापित करने पर आयंबिल, प्रगाढ़ रूप से परितापित करने पर उपवास एवं उन्हें प्राण रहित कर देने पर बेले तप का प्रायश्चित्त आता है।
• स्थूलमृषावादविरमणव्रत में अतिचार लगने पर जघन्यतः एकासना, मध्यमत: आयंबिल एवं उत्कृष्टत: उपवास तप का प्रायश्चित्त आता है।
• अचौर्यव्रत में किसी प्रकार का दोष लगने पर मृषावाद संबंधी प्रायश्चित्त के समान जघन्यत: एकासन, मध्यमत: आयंबिल एवं उत्कृष्टतः उपवास तप का प्रायश्चित्त आता है।
• गृहीता स्त्री के साथ संभोग करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
. वेश्या के साथ संभोग करने पर उस दोष की शुद्धि के लिए निरन्तर दो उपवास करना चाहिए।
• हीन जाति की स्त्री या परस्त्री का अज्ञानता से या स्वप्न में भोग करने पर, उसके लिए एकासना का प्रायश्चित्त कहा गया है।