SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...183 सति। देवकार्ये तदधिकं द्रविणं व्ययमानयेत्।।42।। देवद्रव्यस्य भोगेऽन्ते मध्य उत्कृष्ट एव च। क्रमाद्विशोधनं शीतं धर्मो भद्रमुदाहरेत्।।43।। ___(आचारदिनकर भा. 2, पृ. 255) . नियम होने पर भी परमात्मा की पूजा, वन्दना आदि न करने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। • अन्धकार में गुरु के चरणों से स्वयं के पैर आदि का स्पर्श होने पर तथा गुरु की सूक्ष्म आशातना होने पर पुरिमड्ढ, मध्यम आशातना होने पर एकासना और उत्कृष्ट आशातना होने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। • अप्रतिष्ठित स्थापनाचार्य का पैर से संस्पर्श होने पर नीवि तथा प्रतिष्ठित स्थापनाचार्य का पैर से संस्पर्श होने पर पुरिमड्ढ़ का प्रायश्चित्त आता है। . स्थापनाचार्य नीचे जमीन पर गिर जाये, टूट जाये और उसकी सविधि क्रिया न करें, तो क्रमश: एकासन, नीवि एवं पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। • मुनियों को बैठने के लिए आसन न देने, मुखवस्त्रिका आदि का संग्रह करने, उनको पीने के लिए पानी एवं भोजन का दान न करने पर, इन दोषों की शुद्धि के लिए क्रमश: नीवि, नीवि, एकासना एवं आयंबिल का प्रायश्चित्त बताया गया है। ___ • नियम होने पर भी साधुओं को वन्दन न करने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। • गुरु द्रव्य तथा साधारण द्रव्य का अपने कार्य हेतु उपयोग करने पर उससे अधिक मात्रा में वापस करें। .. • देवद्रव्य का परिभोग करने पर, उससे अधिक द्रव्य का देव कार्य में व्यय करें। • देवद्रव्य का भक्षण करने पर जघन्यत: आयंबिल, मध्यमत: उपवास एवं उत्कृष्टत: बेले का प्रायश्चित्त आता है। 2. पाँच अणुव्रत सम्बन्धित दोषों के प्रायश्चित्त श्रावक जीतकल्प के अनुसार प्रत्येकमुत्तमं तत्र गाढागाढे विशेषतः। द्वीन्द्रियाणां त्रीन्द्रियाणां चतुरक्षभृतामपि।।10।। संघट्टे चाल्पसंतापे सुभोजनमुदाहृतम्। गाढसंतापने
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy