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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...171 निसीहियं वा न करेइ नि.। छप्पयाओ संघट्टेइ अणागाढं पु., गाढासु ए.। ओहियं न पडिलेहेइ उ.। उद्देस-समुद्देस-अणुन्ना-भोयण-पडिक्कमणभूमीओ न पमज्जेइ उ.। गयं तवाइयारपच्छित्तं। (विधिमार्गप्रपा, पृ. 88)
• उपवास का भंग होने पर दो आयंबिल, तीन नीवि, चार एकासना, पाँच पुरिमड्ढ, दो हजार गाथा परिमाण का स्वाध्याय और एक हजार नवकार मन्त्र गिनने का प्रायश्चित्त आता है।
• आयंबिल का भंग होने पर दो आयंबिल, तीन नीवि, चार पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• नीवि का भंग होने पर दो पुरिमड्ढ़ का प्रायश्चित्त आता है। • एकासना आदि का भंग होने पर उससे अधिक प्रत्याख्यान देना चाहिए।
• सांकेतिक गंठिसहियं आदि प्रत्याख्यान का भंग होने पर अथवा द्रव्य आदि अभिग्रह का भंग होने पर यथासंख्या पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• तपस्वी की निन्दा एवं तपस्या में अन्तराय आदि करने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। __इसी क्रम में आचार्य जिनप्रभसूरि योगवाहियों द्वारा अज्ञान या प्रमादवश यथोक्त अनुष्ठान न करने से लगने वाले दोषों के प्रायश्चित्त भी कहते हैं। योगोद्वहन एक तप विशेष अनुष्ठान है अत: तत्सम्बन्धी प्रायश्चित्त विधि तपाचार के अन्तर्गत कही जा रही है___ • कालिक सूत्रों के योग में संघट्टा लिये बिना ही आहार कर लेने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• लेपकारक द्रव्य से उपलिप्त पात्र आदि का उपभोग करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• आधाकर्मी आहार का परिभोग करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• योगोद्वहन काल में संग्रहित खाद्य वस्तुओं का परिभोग करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। ___ • अकाल वेला (रात्रि) में कायिक संज्ञा (मल) का उत्सर्ग करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• योगकाल में स्थंडिल भूमि की प्रतिलेखना न करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।