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________________ 170...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण • वाणव्यन्तर आदि प्रतिमाओं को कौतुहल से देखने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। • स्त्री जाति या स्त्री विशेष की आलोचना करने पर एकासना का प्रायश्चित्त आता है। • डंडे के बिना सौ कदम से अधिक गमन करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • उपानह (जूता) पहनकर रात्रि में दो कोस पर्यन्त चलने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। • उपानह धारण किये बिना ही रात्रि में दो कोस तक गमनागमन करने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है। • कदाचित कोई साधु भिक्षा में प्राप्त विविध प्रकार की सामग्री में से सरस-स्वादिष्ट आहार का मार्ग में ही सेवन कर ले एवं नीरस-विवर्ण आहार को गुरु आदि के लिए ले जाये। इस तरह साधुमण्डली के साथ वंचना (ठगी) करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। 4. तपाचार सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्त। __ उववासभंगे आं. 2, नि. 3, ए. 4, पु. 5। सज्झायसहस्सदुगं, नवगारसहस्समेगं। आयंबिलभंगे आं. 2, नि. 3, पु. 4। निविगइयभंगे पु. 2। एकासणाइभंगे तदहियपच्चक्खाणं देयं। गठिसहियाइभंगे दव्वाइअभिग्गहभंगे वा संखाए पु.। तवं कुणंताणं निन्दाअन्तरायाइकरणे पु.। इयाणिं जोगवाहीणं अन्नाणपमायदोसा जहुत्ताणुट्ठाणे अकए पायच्छित्तं भण्णइ-उस्संघट्ट भुंजइ उ.। लेवाडयदव्वोवलित्तस्स पत्ताइणो परिवासे उ.। आहाकम्मियपरिभोगे उ.। सन्निहिपरिभोगे उ.। अकलसन्नाए उ.। थंडिले न पडिलेहेइ उ.। अपडिलेहियथंडिले उड्ड करेइ उ.। असंखडं करेइ उ.। कोहमाण-माया-लोभेसु उ.। पंचसु वएसु उ.। अब्भक्खाण-पेसुन्न-परपरिवाएसु उ.। पुत्थयं भूमीए पाडेइ, कक्खाए करेइ, दुग्गंधहत्थेहिं लेइ, थुक्काहिं भरेइ, एवमाइसु उ.। रयहरणे चोल पट्टए य उग्गहाओ फिडिए उ.। उन्भो न पडिक्कमइ, वेरत्तियं न करेइ उ.। कवाडं किडियं वा अपमज्जियं उग्घाडेइ पु.। कालस्स न पडिक्कमइ, गोयरचरियं न पडिक्कमइ, आवस्सियं
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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