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172...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
• अप्रतिलेखित स्थंडिल भूमि पर वमन करने से उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• योगवहन काल में किसी मुनि के साथ कलह करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• योगोद्वहन करते हुए क्रोध, मान, माया एवं लोभ करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• पाँच महाव्रतों में दोष लगने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• अभ्याख्यान, पैशुन्य (चुगली) एवं परपरिवाद करने से उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• पुस्तक को भूमि पर गिराने, कांख में रखने, अस्वच्छ हाथों से पकड़ने,थूक आदि से भरने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• साढ़े तीन हाथ परिमाण अवग्रह स्थान में रजोहरण एवं चोलपट्ट गिर जाये तो उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
•खड़े होकर प्रतिक्रमण नहीं करने पर और वैरात्रिक कालग्रहण नहीं करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• दरवाजा अथवा खिड़कियों को प्रमार्जित किये बिना ही खोल देने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• प्राभातिक आदि चारों कालों में लगे दोषों का प्रतिक्रमण न करने पर, गोचरचर्या में संभावित दोषों की आलोचना न करने पर, जिनालय या उपाश्रय में प्रवेश करते हुए 'निसीहि' तथा बाहर निकलते हुए 'आवस्सही' शब्द न कहने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है।
• अनागाढ़ योग में षट्पदी (भ्रमर आदि) का संघट्टा होने पर पुरिमड्ढ तथा आगाढ़ योग में यही संघट्टा दोष लगने पर एकासना का प्रायश्चित्त आता है।
• योग काल में उपधि की प्रतिलेखना न करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। ___ उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा, भोजन एवं प्रतिक्रमण भूमियों की प्रमार्जना न करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।