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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...167 क्रिया करने पर मूल प्रायश्चित्त प्राप्त होता है।
• दिन या रात्रि में सावध स्वप्न आने पर चार लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए। यहाँ सावध स्वप्न का तात्पर्य हिंसाजनित एवं क्रूर दृश्य से है।
• स्वप्न में मनुष्य या तिर्यञ्च योनि सम्बन्धी आकृतियाँ दिखने पर तथा पुद्गलनिसर्ग आदि रूप मैथुन क्रिया देखने पर चार बार लोगस्ससूत्र और एक बार नवकार मन्त्र का चिन्तन करना चाहिए।
मतान्तर से 'सागरवरगम्भीरा' तक लोगस्ससूत्र का स्मरण करना चाहिए। • स्वप्न में रात्रि भोजन करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• निष्प्रयोजन दौड़ने पर, मर्यादित स्थान का उल्लंघन करने पर, आचार्य या वरिष्ठ साधुओं के बिना समवयस्क मुनियों के साथ बहिर्गमन करने पर, चौपड़-शतरंज-द्यूत आदि क्रीड़ाएँ करने पर, इन्द्रजाल आदि के तमाशे देखने पर, गेंद से खेलने पर, समस्या-पहेली आदि में ऊँचे स्वर से गीत गाने पर, किसी मनोरंजक खेल में जोर-जोर से ध्वनि करने पर, मयूर की भाँति आवाज आदि करने पर, जीव-अजीव आदि नानाविध रूप धारण करने पर, सूचिका आदि लोहमय वस्तुओं का नाश करने पर इस तरह साध्वाचार विरुद्ध प्रवृत्ति करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• उभय सन्ध्याओं में बैठे-बैठे प्रतिक्रमण करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• कीचड़ युक्त स्थान में गमन करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• कीचड़ युक्त स्थान में गमन करते हुए त्रस एवं स्थावर जीवों का नाश होने पर तथा त्रस जीवों के अंगोपांग क्षत-विक्षत होने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• अप्रतिलेखित स्थापनाचार्य के सम्मुख प्रतिक्रमण, प्रतिलेखन, चैत्यवन्दन आदि अनुष्ठान करने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• मार्ग में चलते हुए या बृहद् महोत्सव के समय स्त्री के अवयवों का स्पर्श होने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• स्त्री के वस्त्र का स्पर्श होने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है।
• स्त्री के अंग का संघट्टा (सामान्य स्पर्श) होने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है।