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164...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
• निद्रा या प्रमाद से कायोत्सर्ग या वन्दन करने पर, गुरु के पूर्ण करने से पहले स्वयं के कायोत्सर्ग को पूर्ण कर लेने पर, कायोत्सर्ग खण्डित करने पर, आलस्यवश कायोत्सर्ग न करने पर नीवि, उक्त दो स्थानों का सेवन करने पर पुरिमड्ढ, तीन स्थानों का सेवन करने पर एकासना एवं सभी स्थानों का सेवन करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग एवं प्रत्याख्यान-इन छह आवश्यकों का पालन न करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। __ • कार्तिक चातुर्मास की अवधि पूर्ण होने के बाद भी बिना किसी कारण के विहार न करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• उस्तरे से लोच करवाने पर पुरिमड्ढ तथा कैंची से लोच करवाने पर एकासना का प्रायश्चित्त आता है।
वर्षाऋतु का प्रारम्भ होने से पहले ही समस्त उपधि का प्रक्षालन कर लेने पर, प्रमादवश पौन प्रहर के मध्य मात्रक की प्रतिलेखना न करने पर तथा चातुर्मासिक एवं सांवत्सरिक दिवसों की परिशुद्धि होने के उपरान्त भी पंचकल्लाण का प्रायश्चित्त आता है।
• उपवासी मुनि के द्वारा दिन की प्रथम एवं अन्तिम पौरुषी में पात्र की प्रतिलेखना न करने पर, प्रतिलेखना करते वक्त पात्र के नीचे गिरने पर तथा आठ प्रकार का मद करने पर एक कल्लाण का प्रायश्चित्त आता है।
• प्रतिकूल अथवा अनुकूल शब्द, रूप, रस, स्पर्श आदि पुद्गलों के प्रति द्वेष करने पर आयंबिल और राग करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। गन्ध पुद्गलों के प्रति राग या द्वेष कुछ भी करने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• मतान्तर से शब्द, रूप, रस, गन्ध सम्बन्धी पुद्गलों के प्रति राग करने पर आयंबिल और द्वेष करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। स्पर्श पदगलों के प्रति राग या द्वेष करने पर दोनों स्थितियों में पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• अचित्त चन्दनादि की गन्ध को सूंघने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।