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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...163 करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। मतान्तर से देववन्दन न करने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• जिनालय में अर्पित किये गए पुष्प, फल, लवंग आदि का भक्षण करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• रात्रि में वमन होने पर तथा कायिकसंज्ञा (बड़ी नीति) का परित्याग करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• दिन में निष्प्रयोजन शयन करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • विकृत पानी का परिभोग करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
आवश्यक कर्म सम्बन्धी- पाक्षिक क्षमायाचना अथवा चातुर्मासिक क्षमायाचना करने के बावजूद भी वैर भाव को बनाये रखने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
. दिन में अप्रतिलेखित एवं अप्रमार्जित स्थण्डिल भूमि पर लघुनीति आदि का परित्याग करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• दिवस काल में स्थण्डिल योग्य भूमि की प्रमार्जना न करने पर 50 गाथा परिमाण स्वाध्याय का प्रायश्चित्त आता है।
• गुरु के समक्ष जिस आहार आदि की आलोचना नहीं की गई है उस अनालोचित भक्त-पान का सेवन करने पर, आवश्यक सामाचारी के अनुसार आहार करने से पूर्व स्वाध्याय न करने पर तथा गुरु चरणों का अविधि से स्पर्श करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• पाक्षिक आलोचना निमित्त विशेष तप न करने पर बाल शिष्य, स्थविर (बीस वर्ष की दीक्षा पर्याय को प्राप्त हुआ साधु), सामान्य साधु, उपाध्याय और आचार्य को क्रमश: नीवि, पुरिमड्ढ, एकासना, आयंबिल, उपवास का यथासंख्या प्रायश्चित्त आता है।
• चातुर्मासिक आलोचना निमित्त विशेष तप न करने पर बालशिष्य, स्थविर, सामान्यसाधु, उपाध्याय, आचार्य को क्रमश: पुरिमड्ढ, एकासना, आयंबिल, उपवास, छट्ट का यथासंख्या प्रायश्चित्त आता है।
• सांवत्सरिक आलोचना निमित्त विशेष तप न करने पर पूर्ववत बालशिष्यादि को अनुक्रमश: एकासना, आयंबिल, उपवास, बेले और तेले का यथासंख्या प्रायश्चित्त आता है।