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________________ 162...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण • अविधि से प्रतिलेखित वस्त्र पंचक, तृणपंचक, चर्मपंचक, पुस्तकपंचक तथा अप्रतिलेखित वस्त्रपंचक का निष्प्रयोजन सेवन करने पर क्रमश: नीवि, नीवि, नीवि, आयंबिल एवं एकासना का प्रायश्चित्त आता है। • चलते-फिरते आहार करने पर अथवा जिस समय पदार्थ चक्षु का विषय न बनते हों ऐसे दिन के संधिकाल में आहारादि करने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। • लघुनीति-बड़ीनीति का अविधि पूर्वक परिष्ठापन करने पर, गृहीत प्रत्याख्यान का समय पूर्ण होने के पहले ही ‘समय हो गया है' ऐसा बोलने पर, प्रत्याख्यान काल पूरा होने के पहले ही भोजन करने पर, जिन प्रतिमा के समीप कफ आदि के पात्र रखने पर, ग्लान (रोगी) की शुश्रुषा नहीं करने पर, रात्रि काल में सागारिक गृहस्थ से शरीर की मालिश करवाने पर, प्रमार्जना किये बिना ही संस्तारक पर बैठ जाने पर, कोमल एवं गीले आदि स्थानों का बार-बार सेवन करने पर, प्रवेश द्वार एवं निर्गमन द्वार की प्रमार्जना नहीं करने पर, स्वाध्याय किये बिना ही आहार करने पर, रात्रि के समय स्थंडिल भूमि में जाने पर मुनि को पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। • प्रत्याख्यान पूर्ण (नमस्कारमन्त्र का स्मरण) किये बिना ही भोजन करने पर पुरिमड्ढ अथवा 125 गाथा परिमाण स्वाध्याय का प्रायश्चित्त आता है। • स्थापना कुलों में मालिक की आज्ञा बिना प्रवेश करने पर एकासना का प्रायश्चित्त आता है सामान्य दोष संबंधी- स्त्रीकथा एवं राजकथा करने पर उपवास तथा देशकथा एवं भक्तकथा करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। • भिक्षा शिष्य आदि की प्राप्ति के लिए क्रोध, मान एवं माया करने पर आयंबिल तथा लोभ करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • गुरु की अनुमति के बिना संस्तारक के ऊपर आरोहण करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। मतान्तर से पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। • संग्रहीत खाद्य वस्तुओं का परिभोग करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। • स्वाध्यायकाल में हाथ-पैर धोने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। • जिनालय में अविधि पूर्वक देववन्दन करने पर अथवा देववन्दन न
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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