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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 161
उ. । कप्पं न पिबइ उ । सति सामत्थे अट्ठमि - चउद्दसि - नाणपंचमीसु चउत्थं न करेइ उ. । वत्यधोवणियाए पइकप्पं नि. । पमाएण पच्चक्खाणअग्गहणे पु. । वाणमंतराइ पडिमाकोऊहलपलोयणे पु. । इत्थियालोयणे ए. । दंडरहियगमणे उ. । निसागमणे सोवाणहे कोस दुगप्पमाणे आं. । अणुवाणहे नि. ।
(विधिमार्गप्रपा, पृ. 86-88) आहारसम्बन्धी - शय्यातर का आहार आदि ग्रहण करने पर आयंबिल, मतान्तर से पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• जिस भिक्षा को ग्रहण करने का समय परिपूर्ण नहीं हुआ है उसका परिभोग करने पर नीवि अथवा उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
सिया एगइओ लब्धुं विविहं पाणभोयणं ।
भगं भद्दगं भुच्चा विवण्णं विरसमाहरे ।।
इच्चेवं मंडलीवंचणे 3. । गयं उत्तरगुणाइयारपच्छित्तं । । समत्तं च चारित्ताइयारपच्छित्तं । ।
• आहार आदि के लिए उपाश्रय से प्रस्थान करने से पूर्व 'उपयोगविधि' न करने पर अथवा अविधि पूर्वक उपयोग करने पर पुरिमड्ढ, नीवि अथवा 125 गाथा परिमाण स्वाध्याय का प्रायश्चित्त आता है।
• आहार -पानी के लिए अनुपयोग पूर्वक विचरण करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
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गोचरचर्या करते समय लगे दोषों का प्रतिक्रमण न करने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• आहार करने से पूर्व शरीर के प्रत्येक अवयव की प्रमार्जना न करने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है।
प्रतिलेखना एवं प्रमार्जना सम्बन्धी - सूत्र पौरुषी अथवा अर्थ पौरुषी का परिपालन न करने पर पुरिमड्ढ तथा दोनों पौरुषियों का परिपालन न करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
वनस्पतिकाय जीवों का विनाश करने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त
आता है।
आता है।
कोमल या छेदयुक्त तृण का सेवन करने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त