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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...159 संनिहिपरिभोगे आं.। कालवेलाए उदगपाणे पायधोवणे य आं.। अविहिदेववंदणे सव्वहाअवंदणे वा उ.। मयंतरे देवगिहे देवावंदणे पु.। पुष्फललवंगाइभक्खणे उ.। निसिवमणे सण्णाए च उ.। दिवासयणे उ.। वियडपाणे उ.। पक्खाइरित्तं चाउम्मासाइरित्तं वा कोवं परिवासेइ उ.। दिणअप्पडिलेहिय-अप्पमज्जियथंडिल्ले वोसिरइ उ.। थंडिल्लअकरणे सज्झाय 50। गुरुणो अणालोइए भत्तपाणे सज्झायअकरणे गुरुपायसंघट्टणे उ.।
पक्खिए विसेसतवं अकरिताणं खुड्डय-थविर-भिक्खु-उवज्झायसूरीणं जहसंखं नि.पु.ए.आं.उ.। चाउम्मासिए पु.ए.आं.उ. छट्ठाणि। संवच्छरिए ए.आं.उ. छट्ठ-अट्ठमाणि। निद्दापमाएण एगम्मि काउस्सग्गे वंदणए वा, गुरुणो पच्छाकए पुव्वं पारिए भग्गे वा, आलस्सेण सव्वहा अकए वा नि., दोसु पु., तिसु ए., सव्वेसु आं.। सव्वावस्सयअकरणे उ.। कत्तियचउमासयपारणए अन्नत्थ अविहरंताणं आं.। खुरेण लोयं कारेइ पु., कत्तरीए ए.। दीहद्धाणपडिवन्ने गिलाणकप्पावसाणे वरिसारंभं विणा सव्वोवहिधोवणे, पमाएण पउणपहरे मत्तगअपडिलेहणे, तहा चउम्मासियसंवच्छरिएसु सुद्धस्स वि पंचकल्लाणं। कओववासस्स पढमपच्छिमपोरिसीसु पत्तगअपडिलेहणे पडिलेहणाकाले य फिडिए अट्टमयकरणे य एगकल्लाणं। सद्द-रूव-रस-फरिसेसु दोसे आं., रागे उ.। गंधे रागदोसेसु पु.। मयंतरे सद्द-रूव-रस-गंधेसु रागे आं., दोसे उ.। फासे रागदोसेसु पु.। अचित्तचंदणाइगंधग्घाणे पु.। अवग्गहाओ अद्भुट्ठहत्थप्पमाणाओ मुहणंतए फिडिए नि.। रयहरणे उ.। नवरमवग्गहो इत्थ हत्थप्पमाणो। मुहणंतए नासिए उ.। रयहरणे छटुं। मुहपोत्तियं विणा भासणे नि.।।
उवही जहण्णाइभेया तिविहो-मुहपोत्ती केसरिया गुच्छओ पायठवणं ति जहन्नो। पडला रयत्ताणं पत्ताबंधो चोलपट्टो मत्तओ रयहरणं ति मज्झिमो। पत्तं तिन्नि कप्पा य त्ति उक्कोसो। एस ओहिओ उवही। ओवग्गहिओ पुण जहन्नो पीढनिसिज्जादंडउंछणाई। मज्झिमो वासत्ताणपणगं, दंडपणगं, मत्तगतिगं, चम्मतिगं, संथारुत्तरपट्टो इच्चाई। उक्कोसो अक्खा पुत्थगपणगं इच्चाई।
ओहिओवग्गहिए जहन्नओवहिम्मि वि चुयलद्धे अप्पडिलेहिए वा नि.। मज्झिमे पु.। उक्किडे ए.। सव्वोवहिम्मि पुण आं.। जहन्ने उवहिम्मि नासिए,