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156...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण हिंसा में प्रवृत्त हो-ऐसे दायकों द्वारा आहार ग्रहण करने पर मासलघु का प्रायश्चित्त आता है।
. पृथ्वी-अप-तेउ- वाउ और वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय जीवों का संस्पर्श, सामान्य पीड़ा, विशेष पीड़ा एवं मारणान्तिक पीड़ा दे रही हो, ऐसी दात्री से भिक्षा ग्रहण करने पर अनुक्रमश: पणग, मासलघु, मासगुरु और चतुःलघु का प्रायश्चित्त आता है।
• विकलेन्द्रिय जीवों को कष्ट दे रही हो ऐसी दात्री से आहार ग्रहण करने पर मासलघु आदि का प्रायश्चित्त आता है।
. अनन्तकाय का स्पर्शादि कर रही हो, ऐसी दात्री से भिक्षा ग्रहण करने पर चतुःगुरु का प्रायश्चित्त आता है।
• पंचेन्द्रिय मनुष्य या पशु आदि को पीड़ा आदि दे रहा हो, उस दायक से भिक्षा ग्रहण करने पर मासगुरु से लेकर एक कल्लाण तक प्रायश्चित्त आता है।।49-55॥ ___7. उन्मिश्र-सचित्त पृथ्वीकाय-अप्काय-तेउकाय-वायुकाय-वनस्पति-काय एवं त्रसकाय सम्बन्धी उन्मिश्र आहार ग्रहण करने पर चतुःलघु, अचित्त पृथ्वीकायादि से सम्बन्धित उन्मिश्र आहार ग्रहण करने पर पणग तथा मिश्र पृथ्वीकायादि से सम्बन्धित उन्मिश्र आहार ग्रहण करने पर मासलघु का प्रायश्चित्त आता है।
• सचित्त अनन्तकाय सम्बन्धी उन्मिश्र आहार ग्रहण करने पर चतुःगुरु तथा मिश्र अनन्तकाय सम्बन्धी उन्मिश्र आहार ग्रहण करने पर मासगुरु का प्रायश्चित्त आता है।। 57-58।।
8. अपरिणत-आठवाँ अपरिणत एषणा दोष द्रव्य और भाव से दो प्रकार का है।
• अपरिणत के द्रव्य और भाव दोनों भेद सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर चतुःलघु का प्रायश्चित्त आता है।
• विशेष रूप से सचित्त पृथ्वीकायादि से सम्बन्धित अपरिणत बीज आदि-धान्य युक्त भिक्षा ग्रहण करने पर पणग, मिश्र पृथ्वीकायादि सम्बन्धी अपरिणत भिक्षा ग्रहण करने पर मासलघु, सचित्त अनन्तकायिक सम्बन्धी अपरिणत आहार ग्रहण करने पर चतुःगुरु तथा मिश्र अनन्तकायिक सम्बन्धी अपरिणत आहार ग्रहण करने पर मासगुरु का प्रायश्चित्त आता है।। 59-61।।