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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...155 • सचित्त पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, प्रत्येक वनस्पतिकाय एवं त्रसकाय से संलिप्त हई भिक्षा को अनन्तर से ग्रहण करने पर चतुःलघु तथा परम्परा से ग्रहण करने पर मासगुरु का प्रायश्चित्त आता है।
• मिश्र पृथ्वीकाय आदि से संलिप्त हुई भिक्षा आदि को अनन्तर से ग्रहण करने पर मासलघु तथा परम्परा से ग्रहण करने पर पणग का प्रायश्चित्त आता है। . . मिश्र प्रत्येक वनस्पतिकाय एवं अनन्तकाय से संलिप्त भिक्षादि को अनन्तर या परम्परा से ग्रहण करने पर पणग का प्रायश्चित्त आता है।
• सचित्त अनन्तकाय से संलिप्त भिक्षा को अनन्तर से ग्रहण करने पर चतुःगुरु तथा परम्परा से ग्रहण करने पर मासगुरु का प्रायश्चित्त आता है।
• मिश्र अनन्तकाय से संलिप्त भिक्षा आदि को अनन्तर से ग्रहण करने पर पणग का प्रायश्चित्त आता है।।46-48।।
. गुरु अचित्त संहत आहार ग्रहण करने पर चतुःगुरु का प्रायश्चित्त आता है।
6. दायक-भिक्षादाता या भिक्षादात्री वृद्ध हो, भृत्य हो, नपुंसक हो, शरीर कांपता हआ हो, ज्वरित हो, चक्षुहीन हो, मत्त हो, उन्मत्त हो, हाथ-पाँव खण्डित हो, गर्भिणी हो, दोनों पैर बेड़ी से आबद्ध हो, बालवत्सा हो, कड़ाही में सचित्त चने आदि का खण्डन कर रही हो, चक्की में गेहूँ आदि पीस रही हो, अनाज आदि पूँज रही हो, भोजन कर रही हो, दही का बिलोना कर रही हो, सचित्त अनाज दल रही हो, बलि को स्थापित कर रही हो, ऊखल में धान्य आदि कूट रही हो, जिसमें किसी दोष की सम्भावना हो, साधारण दात्री हो, चुराई हुई वस्तु दे रही हो अथवा दूसरों की वस्तु को किसी अन्य के लिए दे रही हो-ऐसी दात्री द्वारा दी गई भिक्षा ग्रहण करने पर चतुःलघु का प्रायश्चित्त आता है।
• जिसके व्रण (पीप आदि) झर रहे हों, पादुका धारण किए हुए हो, सूत कात रही हो, कपास से बिनौले अलग कर रही हो, रूई पीज रही हो, रूई को अलग कर रही हो, रूई की पूणी बना रही हो-ऐसे दायकों द्वारा दी गई भिक्षा ग्रहण करने पर चतुःगुरु का प्रायश्चित्त आता है।
• जिसके हाथ पृथ्वी आदि छ:काय से लिप्त हों, जिसके शरीर का कोई भी अवयव षट्कायिक जीवों से स्पर्शित कर रहा हो, भिक्षादाता छ:काय की