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________________ 154...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण • मिश्र प्रत्येक वनस्पतिकाय और अनन्त वनस्पतिकाय पर रखी गई भिक्षा आदि को साक्षात या परम्परा से ग्रहण करने पर पणग का प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। • सचित्त अनन्तकाय पर रखी हुई भिक्षा आदि को अनन्तर से ग्रहण करने पर चतुःगुरु तथा परम्परा से ग्रहण करने पर मासगुरु का प्रायश्चित्त आता है। • मिश्र अनन्तकाय पर रखी गई भिक्षा आदि को अनन्तर से ग्रहण करने पर मासगुरु और परम्परा से ग्रहण करने पर पणग का प्रायश्चित्त आता है।।38-41॥ 4. पिहित-चौथा पिहित एषणा दोष तीन प्रकार का कहा गया है-1. गुरु अचित्त पिहित 2. सचित्त पिहित और 3: मिश्र पिहित। गुरु अचित्त पिहित सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर चतुःगुरु का प्रायश्चित्त आता है। • सचित्त पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वायुकाय, प्रत्येक वनस्पतिकाय और त्रसकाय द्वारा ढकी हुई भिक्षा को अनन्तर से ग्रहण करने पर चतुःलघु तथा परम्परा से ग्रहण करने पर मासलघु का प्रायश्चित्त आता है। • मिश्र पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, प्रत्येक वनस्पतिकाय एवं त्रसकाय से ढकी हुई भिक्षा आदि को अनन्तर से ग्रहण करने पर मासलघु तथा परम्परा से ग्रहण करने पर पणग का प्रायश्चित्त आता है। . मिश्र प्रत्येक वनस्पतिकाय एवं अनन्त वनस्पतिकाय द्वारा ढ़की हुई भिक्षा आदि को साक्षात या परम्परा से ग्रहण करने पर पणग का प्रायश्चित्त आता है। • सचित्त अनन्तकाय द्वारा ढ़की हुई भिक्षा आदि को अनन्तर से ग्रहण करने पर चतुःगुरु तथा परम्परा से ग्रहण करने पर मासगुरु का प्रायश्चित्त आता है। • मिश्र अनन्तकाय के द्वारा ढकी हुई भिक्षा आदि को अनन्तर से ग्रहण करने पर मासगुरु तथा परम्परा से ग्रहण करने पर पणग का प्रायश्चित्त आता है।।42-45।। 5. संहृत- जिस पात्र में पहले से सचित्त, अचित्त या मिश्र खाद्य सामग्री रखी हई हो उसे अन्य पात्र में डालकर उससे निर्दोष भिक्षा देना, संहत (संलिप्त) दोष कहलाता है। इससे निर्दोष भिक्षा भी सदोष युक्त हो जाती है।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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