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________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 153 • पृथ्वीकाय प्रक्षित चार प्रकार का है - 1. सरजस्क प्रक्षित 2. सचित्त शुक खड़ी मिट्टी - सफेद मिट्टी आदि म्रक्षित 3. सचित्त कीचड़ रहित प्रक्षित और 4. सचित्त कीचड़ युक्त प्रक्षित। • पृथ्वीकाय प्रक्षित के उक्त चारों भेद सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर क्रमशः पणग, मासलघु, चतुः लघु एवं मासलघु का प्रायश्चित्त आता है।।31-34।। • अप्काय म्रक्षित दोष भी चार प्रकार का कहा गया है - 1. पश्चात्कर्म 2. पुर:कर्म 3. सस्निग्ध और 4. उदकार्द्र । इन चारों प्रकारों सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर क्रम से चतुः लघु, चतुः लघु, पणग और मासलघु का प्रायश्चित्त आता है।।34-35।। • वनस्पतिकाय प्रक्षित प्रत्येक और अनन्तकाय के भेद से दो प्रकार का बताया गया है। उनमें प्रत्येक वनस्पति प्रक्षित दोष तीन प्रकार का होता है1. उत्कृष्ट 2. स्पष्ट 3. कुक्कुस । इन तीनों भेद सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर मासलघु का प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। अनन्त वनस्पतिकाय प्रक्षित दोष सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर मासगुरु (एकासना) का प्रायश्चित्त आता है। • अचित्त प्रक्षित दोष दो प्रकार का है - 1. गर्हित और 2. अगर्हित | गर्हित अचित्त प्रक्षित सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर चतुः लघु का प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। • अगर्हित अचित्त म्रक्षित सम्बन्धी आहार ग्रहण करने पर भी चतुः लघु का प्रायश्चित्त ही आता है ।। • 3. निक्षिप्त- तीसरा निक्षिप्त दोष पृथ्वीकाय आदि की अपेक्षा अनन्तर और परम्परा के भेद से दो प्रकार का होता है। • सचित्त पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, प्रत्येक वनस्पतिकाय एवं त्रसकाय पर रखी हुई खाद्य सामग्री आदि का अनन्तर से दोष लगने पर चतुः लघु तथा उसे परम्परा से ग्रहण करने पर मासलघु का प्रायश्चित्त आता है। • मिश्र पृथ्वीकाय आदि पर रखी हुई भिक्षा आदि को साक्षात या परम्परा से ग्रहण करने पर मासलघु और पणग का प्रायश्चित्त आता है।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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