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152... प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
लहुमासाई चउगुरु, अंतं विगलेसु तह अणंतवणे । पंचिंदिएसु गुरुमासाइ, जाव कल्लाणगं एगं । 15511 एगाइ दसंतेसुं, एगाइ दसंतयं सपच्छित्तं । तेण परं दसगं चिय, बहुएसु वि सगल - विगलेसु । 156।। पुढवाइ जिउम्मीसे, चउलहु पणगं च बीयउम्मीसे । मिस्सपुढवाइ मीसे, मासलहुं पावए साहू 1157।। चउगुरु सच्चित्तअणंतमीसिए मिस्सणंत ओम्मीसे । मासगुरु दुविहं पुण, अपरिणयं दव्व- भावेहिं । 15811 ओहेण दव्वभावापरिणयभेएसु, दुसु वि चउ लहुयं । दव्वापरिणमिए पुण, जं नाणत्तं तयं सुणह | 159 ।। अपरिणयंमि छकाए, चउलहु पणगं च बीयअपरिणए । मीसछक्काया परिणय, दो लहुमासमाहंसु ।।60।। सच्चित्तणंतकाए, अपरिणए चउगुरु मुणेयव्वं । मीसाणंत अपरिणए, गुरुमासो भासिओ गुरुणा ।। 61 ।। चलहुयं लहइ मुणी लित्ते, दहिमाइ लित्तकरमत्ते । छड्डियमिह पुढवाइसु, अणंतर परंपरं ति दुहा । 162 ।। छड्डियसचित्तभू- दग - सिहि-पवण- परित्तवणसइ - तसेसु । चउलहुय - मासलहुया, अणंतर परंपरेसु कमा ।163।। अइर- तिरोछड्डियए, मीसेसु य तेसु मासलहु पणगा । अइर-तिरोछड्डियए पणगं, पत्तेयणंतबीएसु ।। 64।। सच्चित्तणंतकाए, अणंतर परंपरेण छड्डियए । कमा, मीसे गुरुमासपणगाई । 165।। पायच्छित्तं निरूवियं इत्तो ।
चउगुरु-मासगुरु इय एसणदोसाणं,
(विधिमार्गप्रपा, पृ 83-86)
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( जीतकल्प भाष्य, 1493-1601 )
1. शंकित - प्रथम शंकित में शंकित दोष के समान ही प्रायश्चित्त प्राप्त होता है ॥31॥
2. प्रक्षित - प्रक्षित नामक दूसरा एषणा दोष सचित्त और अचित्त के भेद से दो प्रकार का कहा गया है। इनमें सचित्त प्रक्षित तीन प्रकार का है - 1. पृथ्वीकाय प्रक्षित 2. अपकाय म्रक्षित और 3. वनस्पतिकाय म्रक्षित ।