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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 151 अणंतर परंपरेण निक्खिते ।
सच्चित्तणंतकाए,
कमा ।।43 ।
चउगुरु मासगुरु कमा, मीसे गुरुमास पणगाई ।। 41 । । तह गुरुअचित्तपिहियं, सचित्तपिहियं च मीसपिहियं च । पिहियं तिहा अभिहियं, चउगुरुयमचित्तगुरुपिहिए ।।42।। पिहिए सचित्तभू - दग - सिहि-पवण- 1 - परित्तवणसइ-तसेहिं । चउलहुय - मासलहुया, अणंतर परंपरेहिं अइरपरंपरपिहिए, मीसेहिं य तेहिं मासलहु पणगा । अइरपरंपरपिहिए, पणगं पत्तेयणंतबीएहिं ।। 44।। सच्चित्तअणंतेणं, अणंतरपरंपरेण पिहियंमि । चउगुरु-मासगुरु कमा, मीसेणं मासगुरु पणगा । 145 ।। साहरिए सजियभू - दग - सिहि-पवण- परित्तवणसइ - तसेसु । चउलहुय - मासलहुया अणंतर परंपरेण कमा । 146 ।। अइतिरोसाहरिए मीसेसु, उ तेसु मासलहु पणगा । अइरतिरोसाहरिए पणगं, पत्तेयणंतबीएसु ।।47।। सच्चित्तअणंतेसुं, अणंतर परंपरेण साहरिए । चउगुरु मासगुरु कमा, मीसेसुं मासगुरु चउगुरु अचित्तगुरु साहरिए, अह दायग त्ति थेर - पहु-पंड - वेविर - जरियंधव्वत्त-मत्त - उम्मत्ते छिन्नकरचरणगुव्विणि, नियलंदुय बद्ध बालवच्छाए । खंड पीसइ भुंजइ जिमइ, विरेलइ दलइ सजियं । 15011 ठवइ बलिं ओयत्तइ, पिढराइ तिहा सपच्चवाया जा । साहारणचोरियगं, दे परक्कं परट्ठ वा ।।51।। दिंतेसु एसु चउलहु, चउगुरु पगलंतपाउयारूढे । कत्तइ लोढइ पिंजइ, विक्खिणइ पमद्दए य मासलहू | 152 || छक्कायवग्गहत्था, समणट्ठा णिक्खिवित्तु ते चेव । घट्टंती गाहंती, आरंभंतीइ सद्वाणं । 153।। भू-जल-सिहि-पवण- परित्त, घट्टणागाढगाढपरियावे । उद्दवणे वि य कमसो पणगं, लहु-गुरुयमास - चउलहुया ।।54।।
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पणगा । 148 ।।
थेराई ।