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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 131 अत्थासायणाए चउगुरु, विणयवंजणभंगेसु पणगं । गयं नाणाइयारपच्छित्तं। (विधिमार्गप्रपा, पृ. 80-81)
● ज्ञानाचार में आठ प्रकार के अतिचार लगते हैं- 1. अकाल समय में स्वाध्याय करना 2. गुरु का विनय नहीं करना 3. ज्ञानोपकरण एवं ज्ञानी गुरुओं का बहुमान नहीं करना 4. योगोवहन अर्थात उपधान के बिना आगम सूत्र आदि पढ़ना-पढ़ाना 5. जिससे ज्ञान पढ़ा उससे अन्य को गुरु मानना 6. प्रतिक्रमण आदि सूत्रों का अशुद्ध उच्चारण करना 7. सूत्रों के अर्थ को अशुद्ध पढ़ना और 8. सूत्र एवं अर्थ दोनों को सही रूप से नहीं पढ़ना।
• आगमसूत्र का उद्देशक पढ़ते समय ज्ञानाचार सम्बन्धी आठों अतिचारों का सेवन होने पर पणग (नीवि) का प्रायश्चित्त आता है। इसी तरह आगमसूत्र का अध्ययन करते समय पूर्वोक्त आठों दोष लगने पर मासलघु ( पुरिमड्ढ), आगमसूत्र का श्रुतस्कन्ध पढ़ते समय पूर्वोक्त आठों दोष लगने पर मासगुरु (एकासन) तथा आगमसूत्र का अंग पढ़ते समय पूर्वोक्त दोषों से चतुः लघु (आयंबिल) का प्रायश्चित्त आता है। यह प्रायश्चित्त सामान्य आगम की अपेक्षा से कहा गया है।
अनागाढ़=दशवैकालिक, आचारांग आदि सूत्रों एवं आगाढ़ = उत्तराध्ययन, भगवती आदि सूत्रों के उद्देशक, अध्ययन, श्रुतस्कन्ध एवं अंग विशेष की वाचना ग्रहण करते हुए अथवा स्वाध्याय करते हुए ज्ञानाचार से सम्बन्धित किसी प्रकार का दोष लगता है तो उद्देशक आदि में क्रमशः मासलघु, मासगुरु, चतुः लघु एवं चतुः गुरु का प्रायश्चित्त आता है।
• जो उपधान किया हुआ नहीं है, सूत्र आदि ग्रहण करने में अयोग्य है तथा व्रत आदि से रहित है उसे उद्देशक आदि पढ़ाने एवं वाचना देने पर चतुः गुरु का प्रायश्चित्त आता है।
· ज्ञानाचार सम्बन्धी अतिचारों का प्रतिक्रमण न करने पर पणग का प्रायश्चित्त आता है।
• सूत्रमण्डली (जहाँ आगम के मूल पाठों का सामूहिक अध्ययन करवाया जाता है वह स्थान), अर्थमण्डली एवं भोजनमण्डली की प्रमार्जना न करने पर पणग का प्रायश्चित्त आता है।
• जहाँ आगमों के अर्थ का विस्तार से प्रतिपादन किया जाता है वहाँ