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132...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण अनुयोग काल में स्थापनाचार्य की स्थापना न करने पर, गुरु एवं स्थापनाचार्य के लिए योग्य आसन न बिछाने पर, गुरु एवं स्थापनाचार्य को विधिपूर्वक वन्दन न करने पर तथा उनके निमित्त कायोत्सर्ग न करने पर चतुःगुरु का प्रायश्चित्त आता है।
• आगाढ़ एवं अनागाढ़ सूत्रों के योगोद्वहन करते समय किसी भी आवश्यक क्रिया में सर्वथा दोष लगने पर यथासंख्या (जितनी बार दोष लगा हो उतनी बार) षट्लघु और चतुःगुरु का प्रायश्चित्त आता है।
• आगाढ़ एवं अनागाढ़ सूत्रों के योगोद्वहन काल में आंशिक दोष लगने पर यथासंख्या चतुःगुरु और चतुःलघु का प्रायश्चित्त आता है।
यहाँ सर्वथा भंग का अभिप्राय है कि आगाढ़ व अनागाढ़ सूत्रों के योगोदवहन काल में यदि कच्ची विगय का सेवन किया जाये तो सर्वथा भंग होता है।
एक ही पात्र में विकृति कारक (घृत, दूध, दही आदि) पदार्थ एवं आयंबिल योग्य पदार्थ को ग्रहण करने पर सर्वथा भंग होता है। ___आगमों के योग पूर्ण होने पर गुर्वाज्ञा लिये बिना ही विकृति ग्रहण का कायोत्सर्ग करते हैं अथवा संघट्टा ग्रहण किये बिना ही आहार करते हैं तो सर्वथा भंग होता है।
• ज्ञानोपकरण एवं ज्ञानीजनों की आशातना करने, ज्ञानी पुरुषों की निन्दा करने, उनके प्रति द्वेष करने तथा किसी को पढ़ने आदि में अन्तराय देने पर देश भंग होता है। ज्ञानाचार के इन अतिचारों में देश भंग होने पर मासगुरु का प्रायश्चित्त आता है।
. पुस्तक-बही-टिप्पणक आदि ज्ञानोपकरण को नीचे गिराने पर, ज्ञान साधनों को बगल में दबाने पर, ज्ञान के उपकरणों को दुर्गन्धित हाथों से पकड़ने पर, पुस्तक आदि को थूक से भरने पर, थूक आदि से अक्षर मिटाने पर तथा पाँवों से पुस्तक आदि का स्पर्श होने पर चतुःलघु का प्रायश्चित्त आता है।
• अन्य मतानुसार ज्ञानाचार की आशातना होने पर जघन्य से मासलघु, मध्यम से मासगुरु तथा उत्कृष्ट से चतुःलघु अथवा चतुःगुरु का प्रायश्चित्त आता है।
• विशेष रूप से सूत्र की आशातना होने पर चतुःलघु, अर्थ की