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130...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण पर तथा बिल्ली आदि तिर्यंच जीवों का स्पर्श होने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• पौषधव्रत में नये पत्तों को तोड़ने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• अप्रतिलेखित स्थंडिल भूमि में मल-मूत्र आदि का परिष्ठापन करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• गुरुवन्दन, कायोत्सर्ग, प्रतिक्रमण आदि आवश्यक क्रियाएँ निर्धारित समय के बाद करने पर तथा पृथ्वीकाय आदि स्थावर या त्रस जीवों का स्पर्श आदि होने पर साधु अधिकार के समान ही प्रायश्चित्त देना चाहिए।
श्रमण (सर्वविरति) सम्बन्धी प्रायश्चित्त आचार्य जिनप्रभसूरि के मतानुसार मुनि के द्वारा संभावित दोषों की परिशुद्धि के लिए जो प्रायश्चित्त विधान है वह इस प्रकार है1. ज्ञानाचार सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्त
इयाणिं नाणाइपंचायारविसयं कमेण पच्छित्तं भण्णइनाणायाराइयारेसु अकालपाढाइसु अट्ठसु उद्देसए पणगं, अज्झयणे मासलहुँ, सुयक्खंधे मासगुरुं, अंगे चउलहुं। एवं ताव अणागाढे दसवेयालिय-आयारंगाईए, आगाढे पुण उत्तरज्झयण- भगवइमाईए उद्देसगाइसु जहसंखं लहुमास-मासगुरू, चउलहु-चउगुरुगा, अकओवहाण-अपत्तअव्वत्ताईणं उद्देसादिकरणे वायणादाणे य चउगुरू।
कालअणुओगाणमपडिक्कमणे पणगं; सुतत्थभोयणमंडलीणमप्पमज्जणे पणगं। अणुओगे अक्खाणं गुरु-अक्खनिसेज्जाणं च अट्ठावणे, वंदण-काउस्सग्गाकरणे य चउगुरू। आगाढाणागाढजोगाणं सव्वभंगे छल्लहु-चउगुरुगा जहसंखं। देसभंगे चउगुरु-चउलहुगा। तत्थ विगइभोगे सव्वभंगो। एगभाणे विगइं आयंबिलपाउग्गं च गिण्हइ। जोगसमत्तीए गुरुं विणा वि सयमेव विगइगहणकाउस्सग्गं करेइ। उस्संघटुं वा भुंजइ ति। देसभंगो नाणनाणीणं पच्चणीययाए निंदाए पओसे पाढाइअंतरायकरणे य मासगुरू। पुत्थय-पट्टिया-ट्टिप्पणगाईणं पडणे कक्खाकरणे दुग्गंधहत्थग्गहणे धुक्कभरणे थुक्काइअक्खरमज्जणे पायलग्गणे चउलहू। मयंतरे जहण्णाए मासलहुं, मज्झिमाए मासगुरुं, उक्कोसाए चउलहुं चउगुरुं वा। विसेसओ उण सुत्तासायणाए चउलहु,