________________
जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 129
के
पौषधव्रती पुरुष का स्त्री के वस्त्र से और पौषधव्रती स्त्री का पुरुष वस्त्र से स्पर्श होने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है। पौषध का में
पुरुष का स्त्री के शरीर से और स्त्री का पुरुष के शरीर
•
से स्पर्श होने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है।
·
पौषधव्रत के समय शरीर पर कम्बली ओढ़े हुए की स्थिति में भी यदि अप्काय (पानी) और विद्युत् प्रकाश का स्पर्श होता है तो नीवि का प्रायश्चित्त आता है।
• शरीर पर कंबली नहीं ओढ़े हुए की स्थिति में यदि अप्काय और विद्युत् प्रकाश का स्पर्श होता है तो पुरिमड्ढ अथवा आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• पौषधव्रत में कंबली नहीं ओढ़े हुए की स्थिति में यदि दीपक के प्रकाश का स्पर्श होता है तो उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
•
गृहीत प्रत्याख्यान को पूर्ण किये बिना ही भोजन - पानी ग्रहण कर लेने पर एवं तत्सम्बन्धी स्थान का काजा परिष्ठापित न करने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
'यह अस्वाध्याय काल है' ऐसा नहीं बोलने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• पौषधव्रत के दौरान वमन होने पर, सूर्यास्त के पश्चात् मल विसर्जन करने पर, स्थिर चित्त से गुर्वादि को वन्दन न करने पर, निष्प्रयोजन दिन में शयन करने पर, विकथा एवं सावद्य भाषा का प्रयोग करने पर, संस्तारक बिछाने का आदेश न लेने पर, संथारा पाठ का स्मरण किये बिना ही रात्रि विश्राम कर लेने पर बैठे-बैठे प्रतिक्रमण करने पर, कीचड़ युक्त स्थान में गमन करने पर इत्यादि दोषों की शुद्धि के लिए आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। पुरुष का स्त्री से स्पर्श होने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त
पौषधव्रती
•
आता है।
• पौषधव्रती स्त्री का पुरुष से स्पर्श हो जाने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• पुरुष एवं स्त्री का परम्परा से स्पर्श होने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• पौषध में रहे हुए पुरुष और नारी के वस्त्रांचल का परस्पर में स्पर्श होने