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128...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
• सामायिक, पौषध एवं अतिथिसंविभागवत संबंधी नियम का पालन न करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। जैसे कि वर्ष या महीने में 25 या 250 सामायिक का नियम है उतनी पूर्ण नहीं करने पर जितनी सामायिक अपूर्ण रहती है उतने उपवास करने चाहिए।
• देशावगासिकव्रत का भंग होने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। __ सामायिक एवं पौषधव्रत में स्वाध्याय न करने (गुरुमुख से सूत्रपाठ न लेने) पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• चातुर्मासिक एवं सांवत्सरिक सम्बन्धी अतिचार न लगने पर भी पंच कल्लाण का प्रायश्चित्त आता है।
• कारण विशेष से पार्श्वस्थ (शिथिलाचारी साधु) आदि के साथ वन्दन व्यवहार न करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• अभिग्रह का भंग होने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• ईर्यापथिक प्रतिक्रमण किये बिना ही स्वाध्याय करने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• स्त्री की गर्भ योनि को संकुचित करवाने पर एक कल्लाण का प्रायश्चित्त आता है, ऐसा पूज्य पुरुषों का आदेश है।
• पौषधधारी जिनालय या उपाश्रय से बाहर निकलते हुए ‘आवस्सही' और प्रवेश करते हुए 'निसीहि' शब्द नहीं कहता है, लघुनीति (मूत्र) एवं बड़ी नीति (मल) आदि दुर्गन्ध वस्तुओं को परिष्ठापित करने योग्य स्थंडिल भूमि की प्रतिलेखना नहीं करता है, कटासन आदि आवश्यक उपकरणों को बिना प्रमार्जन किये ग्रहण करता है अथवा रखता है, उपाश्रय आदि आराधना स्थलों के दरवाजों को अविधिपूर्वक (बिना प्रतिलेखन किये) खोलता है अथवा बंद करता है, शरीर को प्रमार्जित किये बिना ही खुजलाता है, दीवार-भीत आदि की प्रतिलेखना एवं प्रमार्जना किये बिना ही उसका सहारा लेता है, ईर्यापथिक प्रतिक्रमण नहीं करता है, गमनागमन की आलोचना नहीं करता है, पौषधशाला की प्रमार्जना नहीं करता है, उपधि की प्रतिलेखना नहीं करता है, योग्यकाल में स्वाध्याय नहीं करता है तो नीवि का प्रायश्चित्त आता है।
• पौषधव्रती की मुखवस्त्रिका गिर जाने के पश्चात प्राप्त हो जाती है तो नीवि का प्रायश्चित्त आता है तथा प्राप्त न होने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।