________________
जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...127 चाउम्मासिय-संवच्छरिएसु निरइयारस्सावि पचकल्लाणं। कारणे पासत्थाईणं किइकम्मअकरणे आं.। अभिग्गहभंगे आं.। इरियावहियमपडिक्कमिय सज्झायाइ करेइ पु.। इत्थीए नालयमउलणे एगकल्लाणं ति पुज्जाणं आएसो, न पुण कहिं पि दिटुं। बालं वुड्ढे असमत्थं नाऊण तइओ भागो पाडिज्जइ। आलोयणाए गहियाए अणंतरं जावंति वरिसा अंतरे जेति तावंति कल्लाणाणि दिज्जति ति गुरूवएसो। महल्लयरे वि अवराहे छम्मासोववासपज्जंतमेव तवं दायव्वं। जओ वीरजिणतित्थे इत्तियमेव च उक्कोसओ तवं वट्टइ। एगाइ नव जाव अवराहणट्टाणसंखाए पायच्छित्तं दायव्वं। दसाइसु संखाईएसु वि दसगुणमेव देयं ति।
तत्थ पोसहिओ आवस्सियं निसीहियं वा न करेइ, उच्चारपासवणाइभूमीओ न पडिलेहइ, अप्पमज्जिऊण कट्टासणगाइ गिण्हइ मुंचइ वा, कवाडं अविहिणा उग्घाडेइ पिहेइ वा, कायमपमज्जिय कंडुयइ, कुड्डमप्पमज्जिय अवटुंभं करेइ, इरियावहियं न पडिक्कमइ, गमणागमणं न आलोयइ, वसहिं न पमज्जइ, उवहिं न पडिलेहइ, सज्झायं न करेइ, नि.। पाडिय मुहपत्तियं लहइ नि.। न लहइ उ.। पुरिसस्स इत्थियाए य इत्थीपरिसवत्थसंघट्टे नि.। गायसंघट्टे पु.। कंबलिपावरणे, आउकायविज्जुजोइफुसणे नि.। कंबलिविणा पु., अहवा आं.। कंबलिपावरणं विणा पईवफुसणे उ.। अपाराविऊण भोयणे पाणे पुंजयअणुद्धरणे पु.। असज्झ त्ति अभणणे पु.। वमणे निसि सण्णाए भुत्तूणं वंदणयसंवरणअकरणे अणिमित्तदिवासुवणे विगहासावज्जभासासु संथारयअसंदिसावणे संथारयगाहाओ अणुच्चारिऊण सयणे उवविठ्ठपडिक्कमणे बाघारे दगमट्टियागमणे य आं.। पुरिसस्स थीफासे आं.। इत्थीए पुरिसफासे उ.। संतरफासे पु.। अंचलफासे मज्जारीमाइतिरियफासे य नि.। तरूण पण्णतोडणे आं.। अप्पडिलेहियथंडिले पासवणाइवोसिरणे आं.। वंदणकाउस्सग्गाणं गुरुणो पच्छा करणाइसु पुढवाइसंघट्टणाइसु य साहुणो व्व पच्छित्तं देयं। एवं सामाइयत्थस्स वि जहासंभवं चिन्तणीयं।
(विधिमार्गप्रपा, पृ. 91)