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126...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
• छठे दिशापरिमाण से बारहवें अतिथिसंविभाग तक इन सात व्रतों में आंशिक अतिचार (दोष) लगने पर अनुक्रम से पाँचों भेदों का एक गुणा से लेकर सात गुणा तक प्रायश्चित्त आता है।
. देशविरति श्रावक द्वारा रात्रि में अशन आदि का परिभोग करने पर पाँचों प्रकारों का पंचगुणा से आठगुणा तक प्रायश्चित्त आता है।
• दिवसचरिम दुविहार प्रत्याख्यान का भंग होने पर एक उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• दिवसचरिम तिविहार प्रत्याख्यान का भंग होने पर दो उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• दिवसचरिम चतुर्विध प्रत्याख्यान का भंग होने पर चार उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• बीयासना प्रत्याख्यान का भंग होने पर दो उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• एकासना प्रत्याख्यान का भंग होने पर तीन उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
. गृहीत नियम से अधिक संख्या में विगय ग्रहण करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। द्रव्य और सचित्त वस्तु मर्यादा से अधिक ग्रहण करने पर एक उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• रसनेन्द्रिय की पूर्ति हेतु उत्कृष्ट द्रव्य (पकवान आदि गरिष्ठ आहार) का परिभोग करने पर आयंबिल अथवा नीवि का प्रायश्चित्त आता है।
. सांकेतिक प्रत्याख्यान का भंग होने पर एक उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• नीवि प्रत्याख्यान का भंग होने पर दो उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• आयंबिल प्रत्याख्यान का भंग होने पर तीन उपवास और दो पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। 6. सामायिक-देशावगासिक-पौषध-अतिथिसंविभागवत (चार शिक्षाव्रत) सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्त
नियमे सइ सामाइय-पासह-अतिहिसंविभागअकरणे उ.। देसावगासिए भंगे आं.। वायणंतरेण सामाइय-पोसहेसु वि आं.।