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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...125 नीवि-आयंबिल एवं उपवास का भंग होने पर उससे अधिक प्रत्याख्यान देना चाहिए। जैसे आयंबिल का भंग होने पर उपवास का प्रायश्चित्त देना चाहिए।
• उपवास का भंग होने पर दो उपवास का प्रायश्चित्त देना चाहिए।
• वमन के कारण एकासन आदि प्रत्याख्यान खण्डित होने पर पुरिमड्ढ अथवा एकासना का प्रायश्चित्त आता है।
• मतान्तर से नवकारसी-पौरुषी-गंठिसहियं आदि प्रत्याख्यानों का भंग होने पर एक सौ आठ नवकार का स्मरण अथवा एकासना का प्रायश्चित्त आता है।
• मतान्तर से गंठिसहियं आदि सांकेतिक प्रत्याख्यान का भंग होने पर दो सौ गाथा परिमाण स्वाध्याय का प्रायश्चित्त आता है।
• गंठिसहियं प्रत्याख्यान का सर्वथा भंग होने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• बिना कारण दिवसचरिम प्रत्याख्यान न लेने पर और अकारण रात्रि में खाने-पीने का संवर न करने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• अनर्थदण्डव्रत चार प्रकार से खण्डित होता है। इस आठवें व्रत में तत्संबंधी किसी तरह का दोष लगने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है तथा मतान्तर से आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• व्रतधारी गृहस्थ के जीवन में भी प्रतिदिन 18 पापस्थानों के दोष लगने की सम्भावना रहती है उनमें पैशुन्य (चुगली करना), अभ्याख्यान (झूठा कलंक देना) परपरिवाद (दूसरों की निंदा करना), असभ्यता पूर्वक गाली गलौच करने पर आयंबिल अथवा उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
सामाचारी विशेष से
देसओ दिसिभोगाइसु सत्तसु जाए अइयारे जहक्कम पंच वि भेया इक्कगुणाई जाव सत्तगुणा। देसविरइयस्स असणाईनिसिभत्ते कप्पे उ. 3, पंचगुणा जाव अट्ठगुणा। दुहाहारपच्चक्खाणभंगे उ. 1। तिविहाहारपच्चक्खाणभंगे उ. 2। चउव्विहाहारपच्चक्खाणभंगे उ. 4। दुक्कासणभंगे उ. 2। इक्कासणभंगे उ. 3। अहिगविगइगहणे आं.। अहिगदव्वसच्चित्तग्गहणे उ. 1। रसलोलओ उक्किट्ठदव्वभोगे आं.। अहवा नि.। संकेयपच्चक्खाणभंगे उ. 1। निव्वियभंगे उ. 2। आयंबिलभंगे उ. 3, पुरिमल 2।
(विधिमार्गप्रपा, पृ. 92-93)