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जैन एवं इतर साहित्य में, प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...123 होने पर अप्रकट स्थिति में पाँचों प्रकारों का पन्द्रह गुणा तथा प्रकट होने पर तीस गुणा प्रायश्चित्त आता है।
. जिनालय के परिसर में मुनि द्वारा साध्वी के साथ मैथनव्रत खण्डित होने पर अप्रकट स्थिति में पाँचों प्रकारों का साठ गुणा तथा प्रकट हो जाने पर सौ गुणा प्रायश्चित्त आता है।
• जिन चैत्य के अतिरिक्त अन्य स्थानादि में वेश्या, श्राविका, साध्वी आदि के साथ मैथुनव्रत भंग होने पर प्रकट स्थिति में 30 उपवास, 30 आयंबिल, 100 नीवि, 500 पुरिमड्ढ, 1000 एकासना एवं तीस लाख गाथा परिमाण स्वाध्याय का प्रायश्चित्त आता है तथा जन समुदाय में अप्रकट रहने पर उपरोक्त से आधा प्रायश्चित्त दिया जाता है। 5. दिशापरिमाण-भोगोपभोगपरिमाण-अनर्थदण्डविरमणव्रत (तीन गुणव्रत) सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्त
दिसिपरिमाणवयभंगे उ.। भोगोवभोगमाणभंगे छटुं। अणाभोगेणं मज्ज-मंस-महु-मक्खणभोगे उ., आउट्टीए पंचकल्लाणं, अट्ठमं वा। अणंतकायभोगोवद्दवणेस उ.। अकारणं राईभोत्ते उ.। सचित्त वज्जिणो सचित्तअंबगाइपत्तेयभोगे आं.। पनरसकम्मादाणनियमभंगे आं., अहवा उ., अहवा छटुं, एगकल्लाणमिति भावो। दव्वसच्चित्तअसण-पाण-खाइमसाइम-विलेवण-पुप्फाइपरिमाणभंगे पु.। अहियविगइभोगे नि.। पहाणनियमभंगे आं., अहवा उ.। पंचुंबराइफलभक्खणवयभंगे, पच्चक्खाणवयभंगे अट्ठमं। पच्चक्खाणनियमभंगे - अट्ठमं। पच्चक्खाणनियमे सइ निक्कारणं तदकरणे उ.। अकारणसुयणे उ.। नमोक्कारसहिय-पोरिसि-सड्डपोरिसि-पुरमड्ड-दोक्कासण-एक्कासणविगइ-निव्विगइय-आयंबिल-उववासाणं भंगे तदहियपच्चक्खाणं देयं। उववासभंगे उ. 2। वमिवसेण पच्चक्खाणभंगे पु., अहवा ए.। मयंतरे नवकारसहिय-पोरिसि-गंठिसहियाईणं भंगे संखाए नवकार 108, अहवा ए.। मयंतरे गंठिसहियभंगे सज्झाय 200। गंठिसहियनासे उ.। चरिमपच्चक्खाणअग्गहणे रत्तीए य संवरणे अकरणे पु.। अणत्थदण्डे चउविहे उ.। मयंतरे आं.। पेसुन्न-अभक्खाणदाण-परपरिवायअसन्भराडिकरणेसु आं., अहवा उ.।
(विधिमार्गप्रपा, पृ. 91)