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122...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
• सभी प्रकार की साधारण स्त्रियों के साथ व्रत भंग होने पर पच्चीस गुणा से अधिक पाप होता है।
. वेश्या के साथ व्रत भंग होने पर दस गणा पाप होता है।
• कुलटा स्त्री के साथ व्रत भंग होने पर पन्द्रह गणा पाप होता है। कुलांगना के साथ भंग होने पर बीस गुणा पाप होता है।
• स्त्री भी एक प्रकार का परिग्रह है। अत: अहंकार के पोषण हेतु परिग्रह परिमाणव्रत का भंग होने पर पंच कल्लाण का प्रायश्चित्त आता है। इस व्रत भंग में उत्कृष्ट से एक लाख अस्सी हजार गाथा परिमाण स्वाध्याय का प्रायश्चित्त आता है।
सामाचारी विशेष से
मेहुणपच्छित्तं पुव्वं व। विसेसो पुण इमो-देवहरे वेसाए सह पसंगे जाए उ. 10, आं. 10, नि. 10, ए. 10, सज्झायसहस्सतीसं 30। सावियाहिं सद्धिं तं चेव तिगुणं देयं अन्नाए, नाए पंचगुणं। सावग-अज्जियाणं पसंगे जाए नाए य वीसगुणं, अन्नाए तेरसगुणं। संजय-सावियाणं अन्नाए पन्नरसगुणं, नाए तीसगुणं। संजय-अज्जियाणं अन्नाए सट्ठिगुणं, नाए सयगुणं। देवहरं विणा पुव्वोत्तेहिं वेसाईहिं सह पसंगे जाए नाए उ. 30, आं. 30, नि. 100, पु. 500, ए. 1000, सज्झायलक्ख 30, अन्नाए एयद्धं।-गयं मेहुणं।
(विधिमार्गप्रपा, पृ. 92) • जिनालय के परिसर में वेश्या के साथ मैथुनव्रत खण्डित होने का प्रसंग उपस्थित होने पर 10 उपवास, 10 आयंबिल, 10 नीवि, 10 एकासना एवं तीस हजार गाथा परिमाण स्वाध्याय का प्रायश्चित्त आता है।
• जिनालय के परिसर में श्रावक द्वारा श्राविका के साथ मैथुन सेवन करने पर, वह दोष अप्रकट रहे तो पाँचों प्रकारों का तीन गुणा तथा लोगों में प्रकट हो जाने पर पाँच गुणा प्रायश्चित्त आता है।
• जिनालय के परिसर में श्रावक द्वारा साध्वी के साथ मैथुनव्रत भंग होने पर, यदि वह दोष प्रकट हो जाये तो पाँचों प्रकारों का बीस गुणा तथा अप्रकट रहे तो तेरह गुणा प्रायश्चित्त आता है।
• जिनालय के परिसर में मुनि द्वारा श्राविका के साथ मैथुनव्रत खण्डित