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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...121 मूलमवि आवनस्स पंच कल्लाणं। सकलत्ते वयभंगे पंचविसोवया पावं। वेसाए दस। कुलडाए पन्नरस। कुलंगणाए वीसं। दप्पेण परिग्गहपमाणभंगे पंचकल्लाणं। उक्किट्ठे सज्झायलक्खमसीइसहस्साहिये।
___ (विधिमार्गप्रपा, पृ. 90-91) • स्वपत्नी के साथ चतुर्थ व्रत का भंग होने पर एक अट्ठम और एक कल्लाण का प्रायश्चित्त आता है।
• हीन कुल वाली परस्त्री के साथ मैथुनव्रत में दोष लगने पर यदि वह अप्रकट रहे तो पंच कल्लाण तथा प्रकट हो जाये तो एक लाख गाथा परिमाण स्वाध्याय का प्रायश्चित्त आता है।
• उत्तम कुलीन परस्त्री के साथ मैथुनव्रत का भंग होने पर यदि वह दोष अप्रकट रहे तो एक लाख अस्सी हजार गाथा परिमाण स्वाध्याय का प्रायश्चित्त आता है तथा अन्यों में ज्ञात होने पर मूल प्रायश्चित्त आता है।
• उत्तम कुलीन परस्त्री के साथ मैथुनव्रत भंग होने पर भी पूर्वोक्त प्रायश्चित्त ही आता है।
• नपुंसक के साथ अत्यन्त गुप्त मन्त्रणा करने पर एक कल्लाण अथवा पंच कल्लाण का प्रायश्चित्त आता है।
• मतान्तर से स्वपत्नी के साथ प्रमाद पूर्वक व्रत भंग होने पर एक उपवास तथा जानते हुए व्रतभंग होने पर पंच कल्लाण का प्रायश्चित्त आता है।
• यदि स्त्री के द्वारा बलात्कार किया जाए तो स्त्री को भी पंच कल्लाण का प्रायश्चित्त आता है।
• किसी दूसरे के द्वारा स्वीकृत या अमुक समय तक के लिए रखी गई वेश्या अथवा रखैल स्त्री के साथ मैथुनव्रत का भंग होने पर एक कल्लाण अथवा एक उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• वेश्या के साथ प्रमाद वश मैथुनव्रत खण्डित होता है तो दो उपवास अथवा एक उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• कुलवधू के साथ व्रत भंग होने पर मूल प्रायश्चित्त आता है।
• परस्त्री के साथ दर्प से मैथुनव्रत का भंग होने पर पंच कल्लाण का प्रायश्चित्त आता है।
• अत्यन्त प्रसिद्ध एवं उत्तम कुलीन भार्या के साथ व्रत भंग करने पर मूल प्रायश्चित्त आता है।