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120...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
• सामायिक और पौषध ग्रहण किया हुआ व्रती यदि सूक्ष्म रूप से मिथ्या भाषण करता है तो दो उपवास तथा स्थूल रूप से झूठ बोलता है तो चार उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• अव्रती के द्वारा स्थूल झूठ बोला जाए है तो तीन उपवास का प्रायश्चित्त आता है। __ • झूठ बोलने के चार कारण बतलाये गये हैं-1. क्रोध 2. लोभ 3. भय
और 4. हास्य। इन चार कारणों से सूक्ष्म झूठ बोलने पर पुरिमड्ढ आदि पाँचों प्रकारों का दुगुणा प्रायश्चित्त आता है तथा उक्त सर्व कारणों से स्थूल झूठ बोलने पर पाँचों का पंचगुणा प्रायश्चित्त आता है।
• वस्तु बिना दी हुई वस्तु ग्रहण करने में देशत: विवेक रखना चाहिए।
• पौषध एवं सामायिकव्रत में स्थिर व्यक्ति आंशिक रूप से अदत्त वस्तु ग्रहण करता है तो पूर्वोक्त पाँचों प्रकारों का दुगुणा तथा स्थूल रूप से अदत्त वस्तु ग्रहण करता है तो पाँचों का आठ गुणा प्रायश्चित्त आता है।
• सूक्ष्म अदत्त वस्तु सर्वथा से ग्रहण करने पर पाँचों का पंचगुणा तथा स्थूल रूप से ग्रहण करने पर पाँचों का दसगुणा प्रायश्चित्त आता है।
• धन-धान्य आदि नौ प्रकार के परिग्रह परिमाण का अंशत: अतिक्रम होने पर पाँचों भेदों का एक गुणा आदि से लेकर नवगुणा तक प्रायश्चित्त आता है तथा सर्वथा अतिक्रमण होने पर पाँचों भेदों का क्रमश: चार गुणा आदि से लेकर बारह गुणा तक प्रायश्चित्त आता है। 4. मैथुनविरमणव्रत सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्त ___सदारे चउत्थवयभंगे अट्ठमं एगकल्लाणं च। अन्नाए परदारे हीणजणरूवे पंचकल्लाणं, नाए सज्झाय लक्खं। उत्तमपरदारे अन्नाए सज्झायलक्खं, असीइसहस्साहियं। नाए मूलं। उत्तमपरकलत्ते वि। नपुंसगस्स अच्चंतपच्छायाविस्स कल्लाणं, पंचकल्लाणं वा। मयंतरं पमाएण असुमरंतस्स सदारे वयभंगे उ. 1, जाणंतस्स पंचकल्लाणं। जइ इत्थी बलाकारं करेइ तया तीसे पंचकल्लाणं। इत्तरकालपरिग्गहियाए वि वयभंगे कल्लाणं, अहवा उ. 1। वेसाए वयभंगे पमाएण असंभरंतस्स उ. 2, अहवा उ. 11 कुलवहूए वयभंगे मूलं। मिउणो पंचकल्लाणं। अहवा दप्पेणं परदारे पंचकल्लाणं। अइपसिद्धिपत्तस्स उत्तमकुलकलत्ते वयभंगेण