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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 119
अदिन्नादाणे जहन्ने पु., मज्झिमे सघरे अन्नाए ए., नाए आं. । अहवा उ. । उक्किट्ठे अन्नाए पंचकल्लाणं, नाए रायपज्जंतकलहसंपन्ने तं चेव, सज्झायलक्खं च। (विधिमार्गप्रपा, पृ. 90 )
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• मृषावाद, अदत्तादान एवं परिग्रहव्रत में दोष लगने पर तीनों में - जघन्य से एकासना, मध्यम से आयंबिल, उत्कृष्ट से उपवास का प्रायश्चित्त आता है। मृषावाद आदि तीनों विरमणव्रत में अभिमान पूर्वक दोष लगने पर पंचकल्लाण का प्रायश्चित्त आता है अथवा मृषावाद विरमणव्रत में दोष लगने पर जघन्य से पुरिमड्ढ, मध्यम से आयंबिल, उत्कृष्ट से पंचकल्लाण का प्रायश्चित्त आता है।
मृषावादविरमणव्रत में दर्प से दोष लगने पर भी जघन्य आदि से क्रमशः पुरिमड्ढ, आयंबिल एवं उपवास का ही प्रायश्चित्त आता है।
द्रव्य आदि चार प्रकार के अदत्तादानविरमण व्रत में दोष लगने पर जघन्य से पुरिमड्ढ, मध्यम से स्वगृह की अपेक्षा वह दोष अप्रकट रहे तो एकासना एवं प्रकट हो जाने पर आयंबिल अथवा उपवास का प्रायश्चित्त आता है। अदत्तादनविरमण व्रत सम्बन्धी उत्कृष्ट दोष अज्ञात रहने पर पंच कल्लाण और ज्ञात में राज दरबार पर्यन्त कलह पहुँच जाये तो पंचकल्लाण एवं एक लाख गाथा परिमाण स्वाध्याय का प्रायश्चित्त आता है।
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सामाचारी विशेष से
सुमे मुसावाए देसओ जयणा । कयपोसहसामाइओ जइ भासइ सुहुमं मुसावायं तो उ. 21 बायरं भासइ उ. 4। अकयसामाइओ बायरमुसावायं भासइ उ. 3। सव्वओ सुहुमे मुसावाए पंचविहं पि दुगुणं । बायरे पंचविहं पि पंचगुणं ।
अदत्तगहणे सुहुमे देसओ जयणा । कयपोसहसामाइओ अदत्तं गेण्हइ सुहुमं तो पंच बिउणा । बायरं गेण्हइ पंच वि अट्ठगुणा । सव्वओ सुहुमे पंचगुणा बायरे दसगुणा ।
देसओ धणधन्नानवविहे परिग्गहपमाणाइक्कमे एगगुणाई पंच वि भेया जाव नवगुणा । सव्वओ उण कयपच्चक्खाणस्स परिग्गहे नवविहे वि विहिए चउग्गुणाई जाव बारसगुणा । (विधिमार्गप्रपा, पृ. 92)
• सूक्ष्म रूप से असत्य भाषण करते समय देशत: विवेक रखना चाहिए।