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116...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण संख्या बढ़ाते हुए दस बार हिंसा करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। इससे अधिक बार प्राणान्तक कष्ट पहुँचाने पर भी दस उपवास का ही प्रायश्चित्त आता है।
• मतान्तर से अधिक संख्या में विकलेन्द्रिय जीवों का वध करने पर पंचकल्लाण = दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• प्रचुर संख्या में बेइन्द्रिय जीवों का नाश करने पर बीस उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• प्रचुर संख्या में तेइन्द्रिय जीवों का नाश करने पर तीस उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• प्रचुर संख्या में चउरिन्द्रिय जीवों को पीड़ित करने पर चालीस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। __ • पानी के जीवों का, जाले में फंसे हुए मकड़ी आदि का, चींटियों के बिलों का, उदेही-दीमक आदि का विनाश करने पर पंचकल्लाण का प्रायश्चित्त आता है।
• बिना छाने हुए पानी का स्नान के लिए, पीने के लिए एवं गर्म आदि करने के लिए एक बार उपयोग करने पर एक कल्लाण का प्रायश्चित्त आता है।
• बिना छाने हुए पानी से वस्त्रों को प्रक्षालित करने पर पंच कल्लाण का प्रायश्चित्त आता है।
• बिना छाने हुए पानी का जितनी बार उपयोग किया जाता है उतने ही कल्लाण का प्रायश्चित्त आता है।
• जलौक (पानी में रहने वाला जन्तु विशेष) को पीड़ित करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। .. • संख्यात मात्रा में अप्काय के जीवों का नाश करने पर एक कल्लाण का प्रायश्चित्त आता है।
• अल्प से अल्पतर संख्या में भी अप्काय जीवों का विनाश करने पर एक कल्लाण का प्रायश्चित्त आता है।
• अनन्तकायिक जीवों से युक्त स्थानों, चींटियों के बिलों एवं पोलेपन से युक्त उद्यान आदि में स्नान करने पर, चावल आदि के मांड को जहाँ-तहाँ डालने