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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 115
• साधर्मिक रोगी की सामान्य या विशेष किसी तरह से परिचर्या न करने पर सर्वथा से उपवास आदि पाँचों का पच्चीस गुणा प्रायश्चित्त आता है ।
• सम्यक्त्व संबंधी आठ अतिचारों का सेवन होने पर देश से पाँचों का एक-एक गुणा बढ़ाते हुए आठ गुणा और सर्वतः दो गुणा से बढ़ाते हुए नवगुणा तक प्रायश्चित्त आता है।
2. अहिंसा अणुव्रत सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्त
पुढविमाइसु चउरिंदियावसाणेसु साहु व्व पच्छित्तं । पंचिदिएसु पमाएण पाणाइवाए कल्लाणं । संकप्पेणं पंचकल्लाणं । दोण्हं विगलाणं वहे उ. 2 । तिण्हं उ. 31 जाव दसण्हं उ. 10। एक्कारसाइसु बहुसु वि. उ. 10। मयंतरे बहु सु विगलेसु पंचकल्लाणं । पभूयतरबेइंदियउद्दवणे उ. 20, पभूयतरतेइंदियउद्दवणे उ. 30 । पभूयतरचउरिंदियउद्दवणे उ. 401 जीववाणिय- कोलियपुड - कीडियानगर - उद्देहियाइउद्दवणे पंचकल्लाणं । अगलियजलस्स एगवारं ण्हाणपाणतावणाइस एगकल्लाणं । अगलियजलेण वत्थसमूहधुयणे पंचकल्लाणं। जित्तियवारं अगलियजलं वावरेइ तित्तिया पत्तावेक्खा उ. 11 जलोयामोयणे आं. । जीववाणियसंखारगउज्झणे एगकल्लाणं उ. 21 थोवे थोवतरमवि । अणंतकाइयकीडियानगरझुसिरवाडियाइसु ण्हाणजल - उण्हअवसावणाइवहणे संखारगसोसे अगलियजलवावारे गलेज्जंतस्स वा कित्तियस्स वि उज्झणे असोहियइंधणस्स अग्गिमि निक्खेवे केसविरलीकरणे सिरकंडूयणे कीलाए सरलेट्टुमाइक्खेवे पुरिमड्ढाईणि ।
कल्लाणगा ।
(विधिमार्गप्रपा, पृ. 90) पृथ्वीका आदि से लेकर चतुरिन्द्रिय पर्यन्त जीवों का नाश करने पर अथवा उन्हें कष्ट आदि देने पर साधु अधिकार में कहे गये प्रायश्चित्त के समान ही प्रायश्चित्त आते हैं।
पंचेन्द्रिय जीवों की प्रमाद से हिंसा करने पर एक कल्लाण का प्रायश्चित्त आता है।
• पंचेन्द्रिय जीवों की संकल्प पूर्वक हिंसा करने पर पंचकल्लाण का प्रायश्चित्त आता है।
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• विकलेन्द्रिय (बेइन्द्रिय- तेइन्द्रिय- चउरिन्द्रिय) जीवों की दो बार हिंसा करने पर दो उपवास, तीन बार हिंसा करने पर तीन उपवास, इसी तरह क्रमशः