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114...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
• उत्सूत्र वचन (आगम विरुद्ध वचन) की अनुमोदना करने पर देश से एक उपवास और एक आयंबिल तथा सर्वथा से पाँच उपवास, तीन आयंबिल, तीन नीवि एवं पाँच एकासना का प्रायश्चित्त आता है।
. देवद्रव्य का अल्पमात्रा में उपभोग करने पर पाँच उपवास, पाँच आयंबिल, पाँच नीवि, पाँच एकासना, पाँच पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• देवद्रव्य का अधिक मात्रा में उपभोग करने पर यह अपराध यदि लोगों को ज्ञात हो जाये तो पूर्वोक्त पाँचों प्रकारों का चार गुणा तथा लोगों से अज्ञात रहने पर पूर्वोक्त पाँचों का दुगुणा प्रायश्चित्त आता है।
. देवद्रव्य का सर्वथा उपभोग करने पर यदि वह दोष प्रकट हो जाये यानी लोगों को ज्ञात हो जाये तो पूर्वोक्त उपवास आदि पाँचों का बीस गुणा प्रायश्चित्त आता है तथा अप्रकट (अज्ञात) रहने पर उपवास आदि पाँचों का दसगुणा प्रायश्चित्त आता है।
• प्रज्ञाहीन के द्वारा देवद्रव्य की सर्वथा उपेक्षा किये जाने पर और उस दोष के अप्रकट रहने पर उपवास आदि पाँचों का तीन गुणा तथा प्रकट हो जाने पर पाँचों का चार गुणा प्रायश्चित्त आता है।
. साधारण द्रव्य का उपभोग करने पर वह दोष लोगों के समक्ष प्रकट हो जाये तो उपवास आदि पाँचों का चार गुणा और अप्रकट रहने पर पाँचों का दुगुणा प्रायश्चित्त आता है।
• साधर्मिक के साथ किंचित कलह करने पर वह जन समुदाय में अप्रकट रहे तो पाँचों का एक गुणा तथा प्रचुर मात्रा में कलह करने पर वह लोगों में प्रकट हो जाये तो पाँचों का तीन गुणा प्रायश्चित्त आता है।
• साधर्मिक भाई-बहन का किंचित अपमान करने पर यदि वह दोष अप्रकट रहे तो पाँचों का एक गुणा तथा अधिक अपमान करने पर वह प्रकट हो जाये तो पाँचों का दुगुणा प्रायश्चित्त आता है।
• बीमार व्यक्ति की आंशिक रूप से भी शुश्रुषा न करने पर पाँचों का दुगुणा प्रायश्चित्त आता है।
• साधर्मिक रूग्ण की सम्यक् शुश्रुषा न करने पर देश से पाँचों का पंचगुणा और सर्वथा से पाँचों का छह गुणा प्रायश्चित्त आता है।