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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 117
पर, अशोधित ईंधन को अग्नि में प्रक्षेपित करने पर, सिर को खुजलाने पर एवं तालाब में क्रीड़ावश पत्थर आदि फेंकने पर पुरिमड्ढ आदि का प्रायश्चित्त आता है।
सामाचारी विशेष के अनुसार
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पाणाइवाए सुहुमे बायरे वा देसओ कए कप्पे ते पंच, पमाए बिउणा, दप्पे तिगुणा, आउट्टियाए चउग्गुणा । पुढवि- आउ - तेउ वाउ- वणस्सईणं संघट्टणे पु., परियावणे ए., उद्दवणे उ. । तसकायसंघट्टणे आं., परिआवणे आं. 2, उद्दवणे पंच. । कप्पंमि, उद्दवणे पंच- दुगुणाणि, पमाएण तिगुणाणि, आउट्टि याए पंचगुणाणि । एवं देसओ । सव्वओ पुढविकायाईणं अट्टहं संघट्टणे कमेण पु. 2, नि. 3, ए. 4, आं.2, उ. 2, उ. 3, उ. 4, उ. 5। नवमे पंचविहं एयं पंचगुणं । परियावणे एएसु एयं दुगुणं । उद्दवणे पंचगुणं । कप्पे संघट्टणपरियावणुद्दवणेसु सव्वओ आं. 1, आं. 2, आं. 31 पमाए उ. 1, उ. 2, उ. 31 दप्पे उ. 2, उ. 3, उ. 41 आउट्टियाए संघट्टणाइसु उ. 2, उ. 3, उ. 4। (विधिमार्गप्रपा, पृ. 92 )
• सूक्ष्म अथवा बादर जीवों की आंशिक हिंसा करने पर पुरिमड्ढ आदि पाँचों का एकगुणा, उन्हीं का प्रमाद से अतिपात करने पर पाँचों का दुगुणा, उन्हीं जीवों की दर्प से हिंसा करने पर पाँचों का तीन गुणा तथा जान-बूझकर हिंसा करने पर पाँचों का चार गुणा प्रायश्चित्त आता है।
पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय सम्बन्धी जीवों का संघर्षण (पीड़ा युक्त स्पर्श) करने पर पुरिमड्ढ, परितापना देने पर एकासना तथा मारणान्तिक कष्ट देने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• त्रसकायिक (बेइन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक) जीवों का संघर्षण (वेदना युक्त स्पर्श) करने पर एक आयंबिल, संताप देने पर दो आयंबिल तथा उन्हें मारणान्तिक कष्ट देने पर पुरिमड्ढ आदि पाँचों का एक गुणा प्रायश्चित्त आता है।
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आचारशास्त्र के अनुसार त्रसकायिक जीवों को असह्य पीड़ा देने पर पुरिमड्ढ आदि पाँचों का दुगुणे से अधिक, उन्हें प्रमाद से पीड़ित करने पर पाँचों का तिगुणा एवं उन्हें जानबूझकर कष्ट देने पर पाँचों का पंचगुणा