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________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 111 जाये तो जघन्य से पुरिमड्ढ, मध्यम से एकासना और उत्कृष्ट से आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। • प्रतिक्रमण आदि आवश्यक क्रियाओं के लिए स्थापित स्थापनाचार्य से पाँव का स्पर्श हो जाये तो नीवि और ठोकर लग जाने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। • स्थापित - अस्थापित दोनों प्रकार के स्थापनाचार्य को नीचे गिराने पर, स्थापनाचार्य को खण्डित करने पर एवं प्रव्रजित ( दीक्षित) साधु-साध्वियों के आसन, मुखवस्त्रिका आदि उपकरणों का उपभोग करने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है। • जिनालय में पेय पदार्थों का सेवन करने पर एकासना और अशन संबंधी खाद्य वस्तुओं का भोग करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। वासकुंपी के द्वारा प्रतिमा को आघात पहुँचाने पर, धोती- के - दुपट्टा बिना परमात्मा की पूजा करने पर, प्रमाद से प्रतिमा को नीचे गिराने पर ", सूत्रअर्थादि का उच्चारण करते समय पुस्तक - पट्टी - टिप्पणक आदि ज्ञान साधनों से थूक का स्पर्श होने पर', पाँव आदि के घर्षण से अथवा यूँक आदि से पट्टी के अक्षर मिटाने पर 2, ज्ञान सम्बन्धी उपकरणों को गिराने पर, अस्थापित स्थापनाचार्य को निष्प्रयोजन हिलाने पर 1, उन्हें नीचे गिराने पर ' अथवा खण्डित करने पर निर्दिष्ट 1-2-3 की संख्या के अनुसार जघन्य, मध्यम एवं उत्कृष्ट की अपेक्षा क्रमशः पुरिमड्ढ, एकासना और आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। पूर्वोक्त ज्ञान (पुस्तक -ठवणी आदि), दर्शन (प्रतिमा आदि) एवं चारित्र (स्थापनाचार्य) सम्बन्धी उपकरणों की आशातना (अविनय ) करने पर जघन्य से पुरिमड्ढ, मध्यम से एकासना और उत्कृष्ट से आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। अप्रतिलेखित स्थापनाचार्य के सम्मुख प्रतिक्रमण आदि आवश्यक अनुष्ठान करने पर पुरिमड्ढ अथवा सौ गाथा परिमाण स्वाध्याय का प्रायश्चित्त आता है। · • • स्थूल रूप से मिथ्यात्व प्रवृत्ति करने पर जैसे माघ पूर्णिमा उत्सव के दिन ईख से दंत धावन आदि करने पर पंचकल्लाण = दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। · नवकारवाली (जापमाला) के खण्डित होने या गुम जाने पर एकासना का प्रायश्चित्त आता है।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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