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112...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
• कुछ आचार्यों के मतानुसार स्थापनाचार्य के खण्डित होने पर और जापमाला को बाहर फेंक देने पर एक कल्लाण = दो उपवास अथवा पाँच हजार गाथा परिमाण स्वाध्याय का प्रायश्चित्त आता है।
. जिनालय के परिसर में कन्या का लग्न करने पर एवं सांड आदि का विवाह करवाने पर आयबिल का प्रायश्चित्त आता है। __ . मिथ्यात्व बुद्धि से पुतला-पुतलिका आदि का विवाह करने पर पुरिमड्ड का प्रायश्चित्त आता है।
• दीपक आदि के द्वारा अथवा प्रमाद से जिनप्रतिमा को जला देने पर एवं खण्डित कर देने पर पुनः नयी प्रतिमा बनवाने पर ही उस पाप की शुद्धि होती है। इसी भाँति पुस्तक-बही आदि ज्ञान सम्बन्धी साधनों (उपकरणों) के खण्डित होने या जल जाने पर भी पुन: नया निर्मित करवाने से दोषमुक्ति होती है।
. पुस्तक आदि ज्ञानोपकरणों को कांख में रखने पर, दुर्गन्ध युक्त हाथ आदि से उन्हें पकड़ने पर तथा पाँवों का उन साधनों से स्पर्श होने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• जिनालय अथवा उस परिसर में निष्प्रयोजन शयन करने पर दो आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• जिनालय की परिसर में हाथ-पाँव आदि का प्रक्षालन करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• जिनालय की निर्धारित सीमा में स्नान करने पर दो उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
. जिनालय की परिसीमा में विकथा (व्यर्थ की बातें) करने पर एक आयंबिल एवं एक पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• जिन चैत्य के परिसर में लड़ाई या युद्ध करने पर दो उपवास एवं दो पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
. जिनालय के परिसर में घर-व्यापार का लेखा-जोखा करने पर और पुत्र-पुत्री का सम्बन्ध निश्चित करने पर तीन उपवास एवं तीन पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• जिन चैत्य के परिसर में पुरुषों द्वारा परस्पर तालियों के सुरवाली क्रीड़ाएँ करने पर, हँसी-मजाक करने पर तथा नृत्य आदि की अभद्र चेष्टाएँ करने पर तीन उपवास एवं तीन पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।