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110...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
पडिमादाहे भंगे, पलीवणाइसु पमायओ वावि ।
तह पुत्थ-पट्टियाईणहिणवकारावणे सुद्धी ।। पुत्थयमाईण कक्खाकरणे दुग्गंधहत्थग्गहणे पायलग्गणे आं.। देवहरे निक्कारणं सयणे आं. 2। देवजगईए हत्थपायपक्खालणे उ. 2। विकहाकरणे आं., पु.। झगडयं जुज्झंण्हाणए वा करेइ उ. 2, पु. 2। घरलेक्खयं प्रत्तपत्तियासंबंधं च करेइ उ. 3, पु. 3। हत्थरंडि हासं चच्छरिं देवठ्ठाणे परोप्परं पुरिसाणं करिताणं उ. 3, पु. 3। इत्थीहिं सह उ. 6, पु. 6।
(विधिमार्गप्रपा, पृ. 89-90) • सम्यक्त्वव्रत में शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, मूढ़दृष्टि, अनुपबृंहण आदि आठ प्रकार के अतिचार (दोष) लगते हैं। यह अतिचार आंशिक रूप से लगने पर आयम्बिल तथा सर्वथा से लगने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• जिन प्रतिमा की पूजा करते समय अगरबत्ती, धूपदानी, थूक, श्वासोश्वास या वस्त्र का आँचल उससे स्पर्शित हो जाये अथवा प्रतिमा हाथ से गिर जाये तो पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। - . यदि नगर में जिनालय है, गुरु भगवन्त भी विराजमान हैं और शारीरिक सामर्थ्य भी है फिर भी नियम के अनुसार एक या तीन बार अरिहंत परमात्मा एवं गुरु को वन्दन न करने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• अविधि से जिनप्रतिमा का प्रक्षाल करने पर एकासना का प्रायश्चित्त आता है।
. देवद्रव्य का उपयोग अशन आदि आहार एवं वस्त्र आदि खरीदने के लिए किया हो, गुरु-द्रव्य का उपयोग वस्त्र आदि कार्यों में किया हो तथा साधारणद्रव्य का उपयोग भी स्वयं के निजी कार्यों के लिए किया हो तो भोगा गया उतना द्रव्य (धन) तत्संबंधी भण्डारों में देना चाहिए। यही इसका प्रायश्चित्त है।
• देवद्रव्य और गुरुद्रव्य का उपभोग जघन्य से करने पर आयंबिल, मध्यम से करने पर उपवास तथा उत्कृष्ट से करने पर एक कल्लाण का प्रायश्चित्त आता है। इस प्रकार यह प्रायश्चित्त दुगुना भी दे सकते हैं।
• गुरु के आसन आदि से अपने पाँव का स्पर्श होने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है।
• सन्ध्याकाल में दैवसिक प्रतिक्रमण अथवा आवश्यक कार्य के लिए उपाश्रय में जाने पर गुरु के हाथ-पाँव आदि से अपने किसी अंग का स्पर्श हो