________________
जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...109 से प्रतिबद्ध है यद्यपि इसमें अन्य सामाचारियों एवं परम्पराओं का भी यथायोग्य सूचन किया गया है।
इसमें ‘जीतव्यवहार' के अनुसार दर्शायी गयी प्रायश्चित्त विधि इस प्रकार है
गृहस्थ (देशविरति) सम्बन्धी प्रायश्चित्त सर्वप्रथम गृहस्थ व्रती के द्वारा संभावित दोषों की शद्धि करने के लिए जो प्रायश्चित्त (दण्ड) दिया जाता है उसका वर्णन कर रहे हैं1. सम्यक्त्वव्रत सम्बन्धी दोषों के प्रायश्चित्त
इओ देसविरइपायच्छित्तसंगहो भण्णइ-देसओ संकाइस अट्ठसु आ.। सव्वओ उ.। देवस्य वासकुंपिया-धूवायण-थुक्कियऊसासअंचललग्गणे, पडिमापाडणे, सइ नियमे देवगुरुअवंदणे पु.। अविहिणा पडिमाउज्जालणे ए.। देवदव्वस्स असणाइआहार-दम्म-वत्थाइणो, गुरुदव्वस्स वत्थाइणो साहारणधणस्स य भोगे जावइयं दव्वं भुत्तं तावइयं तस्स अन्नस्स वा देवस्स गुरुणो य देयं। तवो य-देव-गुरुदव्वे जहन्ने भुत्ते आं.। मज्झिमे उ.। उक्किट्टे एगकल्लाणं। एयं दुगमवि देयं। गुरुआसणमाइणो पायाइणा घट्टणे नि.। अंधयारमाइम्मि गुरुणो हत्थपायाइलग्गणे जहन्न-मज्झिम-उक्किडे पु.,ए.,आं.। अट्ठवियस्स ठवणायरियस्स पायप्फंसे नि.। ठवियस्स पु.। पाडणे उभयं। ठवणायरियनासणे पव्वइयाणं आसणमुहपोत्तियाइ उवभोगे नि.। पाणासणभोगेसु ए., आं.। वासकुंपियाए पडिमाअप्फालणे 1, धोवत्तियं विणा देवच्चणे 2, पमाएण भूमिपाडणे 3। पुत्थय-पट्टिया-टिप्पणमाइणो वयणोत्थनिट्ठीवणालवप्फंसे 1, चरणघट्टणनिट्ठीवणपट्ठियाअक्खरमज्जणेस 2, भूमिपाडणे 3। अणुट्ठवियठवणायरियस्स चालणे 1, भूमिपाडणे 2, पणासणे 3। एवं जहन्न-मज्झिम-उक्किट्ठआसायणासु पु., ए., आं. अप्पडिलेहियठव-णायरियपुरओ अणुट्ठाणकरणे पु., सज्झायसयं वा। अवयारणगाइबायरमिच्छत्तकरणे पंचकल्लाणं उ. 10। जवमालियानासणे ए.। केसिं चि ठवणायरिए गमिए जवमालियानिग्गमणे य एगकल्लाणं, सज्झायपंचसहस्सं वा। कन्नाहलग्गहणे संडाइविवाहे आं.। घिउल्लियाइकरणे पु.।