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________________ आलोचना क्या, क्यों और कब ?... 89 आलोचना करने वाला गृहस्थ हो तो वह सर्व चैत्यों में बृहत्स्नात्र विधि से महापूजा करें, साधर्मिक वात्सल्य करें, संघपूजा करें एवं साधुओं को वस्त्र, अन्न आदि एवं ज्ञान के उपकरण प्रदान करें। · तत्पश्चात शुभ लग्न के आने पर प्रायश्चित्तकर्त्ता गुरु की प्रदक्षिणा करें | फिर ईर्यापथ प्रतिक्रमण करके चार स्तुतियों से मध्यम देववन्दन करें। तदनन्तर मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना कर द्वादशावर्त्त वन्दन करें। • तदनन्तर एक खमासमण देकर कहे- “ इच्छाकारेण संदिसह भगवन सोधि मुहपत्ति पडिलेहुं' - हे भगवन! आत्मशुद्धि निमित्त मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन करने की अनुमति दीजिए। गुरु कहे- 'पडिलेहेह' तब शिष्य मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर द्वादशावर्त्त वंदन करे । तदनन्तर प्रायश्चित्तग्राही एक खमासमण देकर कहे- 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन! सोधि संदिसाहुं?' - हे भगवान्! आप इच्छापूर्वक आज्ञा दीजिए कि मैं आलोचना (आत्मशुद्धि की आराधना प्रारम्भ ) करूँ ? गुरु कहे 'संदिसावेह' - आत्मशुद्धि की आराधना प्रारम्भ कर सकते हो। • उसके बाद पुनः आलोचनाग्राही एक खमासमण देकर कहे'इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! सोधि करस्युं' - आपकी इच्छा एवं अनुमति पूर्वक आलोचना अथवा आत्मशुद्धि की आराधना प्रारम्भ कर रहा हूँ। तब गुरु कहे- 'करेह' - आलोचना करो। • तदनन्तर आलोचनाग्राही 'प्रायश्चित्त शुद्धि निमित्त कायोत्सर्ग करता हूँ' ऐसा कह अन्नत्थसूत्र बोलकर चार लोगस्ससूत्र का चिन्तन करें। कायोत्सर्ग पूर्ण करके प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलें। फिर गुरु के सामने अर्धावनत मुद्रा में तीन बार नमस्कारमन्त्र पढ़कर निम्न तीन गाथाएँ तीन-तीन बार बोलें वंदित्तु वद्धमाणं, गोयमसामि च जम्बुनामं च । आलोअणा विहाणं, वुत्थामि जहाणुपुवीए ।।1।। आलोयणा दायव्वा, कस्सवि केणावि कत्थ काले वा । के अ अदाणे दोसा, हुंति गुणा के जे मे जाणंति जिणा, अवराहा जेसु तेहं आलोएम, उवडिओ अदाणे वा ।।2।। जेसु ठाणेसु । सव्वकालंपि ।।3।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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