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प्रायश्चित्त दान की उपयोगिता एवं उसके प्रभाव...57
प्रत्यक्ष में यद्यपि किसी जीव का नाश नहीं हुआ परंतु भीतर में उत्पन्न सांप मारने के भावों ने सांप को मारने जितने ही कर्मों का बंधन कर लिया। अतः आंतरिक मलिनता एवं भावों की उग्रता ही छोटे पाप को भी बड़े दोष रूप बना देती है। इसके विपरीत आंतरिक परिणामों की निर्मलता हो और बाह्य रूप से कोई भयंकर घटना भी घट जाए तो वह विशेष कर्म बंध का कारण नहीं बनती। जैसे कि कोई मजदूर घर का मलबा ऊपर से फेंक रहा हो और अनजाने में किसी राह चलते व्यक्ति के उसमें से कोई पत्थर लग जाए और उसकी मृत्यु भी हो जाए तो भी उस मजदूर के उतने प्रगाढ़ कर्मों का बंधन नहीं होता और न लोक व्यवहार में उसे वैसी कठोर सजा दी जाती है।
यदि किया गया छोटा-सा अकरणीय कार्य या पाप वृत्ति करने के पश्चात् उसके प्रति मन में पश्चात्ताप और हीन भाव उत्पन्न न हो या वह अकरणीय न लगे तो छोटा-सा कार्य भी महान कर्म बंध का हेतु बन जाता है जैसे कि छोटा सा कर्ज न चुकाने पर ब्याज के कारण वह एक दिन बड़ी रकम का रूप धारण कर लेता है। उदाहरण के तौर पर यदि कोई बच्चा घर में चोरी करता है और माता-पिता के द्वारा डांटने समझाने पर अपनी गलती मान ले तो माता-पिता भी उसे माफ कर देते हैं। परंतु यदि वही लड़का अपनी गलती न मानकर मातापिता के समक्ष उदंडता दिखाए, सवाल-जवाब करें तो माता-पिता को पुत्र के बुरे भविष्य का अंदेशा हो जाता है और कई बार माता-पिता के द्वारा त्याग दिया जाता है। वैसे ही ज्ञानी भगवन्तों के अनुसार छोटे-छोटे पापकार्य भी बड़े पाप कार्यों में निमित्तभूत बन जाते हैं। कदाच छोटी गल्तियाँ अकरणीय रूप भी लगे, उसके प्रति संताप या पश्चात्ताप भी उत्पन्न हो जाये उसके बावजूद भी अभिमान या मान भंग के भय से गुरु के सम्मुख उनका प्रगटीकरण न करें, प्रायश्चित्त स्वीकार न करें तो वह मान और पाप की गांठ वैसी ही रह जाती है, वह पाप भाव शल्य के रूप में प्रगाढ़ होकर भव-भवान्तर में पाप प्रवृत्ति को बढ़ाता है। जैसे कि कहते हैं 'एक झूठ सौ झूठ बुलवाता है वैसे ही एक पाप सौ पाप करवाता है। चुभा हुआ छोटा सा कांटा न निकालने पर भयंकर पीड़ा का कारण बन जाता है वैसे ही पाप से अधिक मान कषाय को महत्त्व देने पर वह कांटे से कई गुणा अधिक आत्म अशान्ति का हेतु बनता है। इसलिए छोटी सी गल्ती का भी प्रायश्चित्त करना चाहिए।