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________________ 54... प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण अपराध करने पर उसके अब तक का विकास शून्य हो सकता है या उसे नौकरी से बहिष्कृत (Suspend ) किया जा सकता है तब व्यक्ति गलत कार्य करते हुए डरेगा, क्योंकि इन सबके द्वारा उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँचती है। इस प्रकार प्रायश्चित्त के द्वारा सामूहिक स्थान जैसे- स्कूल, कार्यालय आदि का नियंत्रण अच्छे तरीके से हो सकता है। इस प्रकार प्रबंधन एवं नियोजन की अपेक्षा प्रायश्चित्त व्यवस्था बहु उपयोगी हो सकती है। आधुनिक जगत की समस्याओं के संदर्भ में यदि प्रायश्चित्त की समीक्षा की जाए तो निर्विवादतः कई समस्याओं के समाधान में इसकी उपादेयता स्वतः सिद्ध है। यदि व्यक्तिगत स्तर पर चिंतन करें तो प्रायश्चित्त, मानसिक उद्विग्नता को शांत करने में और जीवनगत दुष्प्रवृत्तियों के निष्कासन में अत्यंत सहयोगी हो सकता है। समाज में बढ़ रही पदलोलुपता, भ्रष्टाचार, सत्ता शक्ति का दुरुपयोग आदि को इसके माध्यम से रोका जा सकता है, क्योंकि जब अपराधी स्वयं अपने दोषों के निराकरण हेतु तत्पर होकर अपराध की सजा के रूप में प्रायश्चित्त करेगा तब व्यवस्था प्रणाली ही ऐसी होगी कि समाज में दोषों या अपराधों का विकास ही नहीं होगा । गुरुमुख से प्रायश्चित्त आदि लेने पर भावों का शुद्धिकरण होता है एवं परिणामों की निर्मलता बढ़ती है। शास्त्रकारों के मत में प्रायश्चित्त के लाभ प्रायश्चित्त स्वीकार से प्रायश्चित्त कर्त्ता को अनेक लाभ होते हैं उनमें कुछ मुख्य लाभ निम्न हैं 1. कृत दोषों का प्रायश्चित्त करने पर शुभ अध्यवसायों के कारण अनेक अन्य दोष भी नष्ट हो जाते हैं। 2. प्रायश्चित्त के उद्देश्य से गुरु के समक्ष पापों का निवेदन करने पर अभिमान टूटता है। अहं संसार परिभ्रमण का मुख्य कारण है। अहंकार से मनुष्य के मन में विषय वृत्ति, सुखाभिलाषा, तृष्णा, लोभ, हिंसा आदि अनेक दूषणों की वृद्धि होती है। उसके परिणामस्वरूप अनालोचित आत्मा का संसार परिभ्रमण बढ़ता है वहीं गुरु के सामने पापों की आलोचना करने से अहं तत्त्व चूर-चूर जाता है। 3. गुरु द्वारा प्रायश्चित्त रूप में तप-जप आदि जो भी दंड प्राप्त होता है उससे जीवन में उतनी धर्म साधना निश्चित हो जाती है। उस तपश्चरण के
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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