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श्रुत यात्रा का मुख्य पड़ाव श्री जिन रंगसूरि पौशाल कोलकाता किसी भी कार्य की सफलता एवं उसकी पूर्णाहुति में तद्योग्य वातावरण एवं स्थान की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यह सब अनुकूलताएँ कार्य को पूर्णता ही नहीं श्रेष्ठता भी प्रदान करती है। इसीलिए साधकों को साधना योग्य श्रेत्र का परीक्षण अवश्य करना चाहिए ऐसा शास्त्रकारों का मन्तव्य है। क्षेत्र की योग्यता कार्य को शीघ्र परिणामी बनाती है। इससे मन और तन की स्फूर्ति बनी रहती है तथा कार्य करने में आनंद की अनुभूति होती है।
कोलकाता की भीड़-भरी जिंदगी में एक शांत एवं अध्ययन योग्य स्थान मिलना अत्यंत दुर्लभ है। यदि ऐसा स्थल मिल जाए तो उसे स्वर्ग भूमि से कम नहीं आंका जा सकता। कोलकाता बड़ा बाजार में एक ऐसा ही स्वर्गोपम स्थान है आडी बांसतल्ला स्थित श्री जिनरंगसूरि पौशाल। यह पौशाल बड़े बाजार जैसे मार्केट एरिया में होने के बावजूद भी वहाँ पहाड़ों की शांति का अनुभव होता है। यहाँ पर एक शुद्ध प्राकृतिक माहौल की अनुभूति होती है। यह साधुसाध्वियों के रहने के लिए एक अत्यंत अनुकूल, मनोरम एवं साधना योग्य स्थान है।
श्री जिनरंगसूरि पौशाल की स्थापना विक्रम संवत 1972-73 में यतिप्रवर श्री जिनरत्नसूरिजी के सदुपदेश से हुई। पूज्यश्री के चातुर्मास के दौरान उचित स्थान की कमी महसूस होने लगी। उसी के परिणाम स्वरूप जौहरी साथ के श्रावक वर्ग द्वारा योग्य स्थान लिया गया। निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। दीर्घ दृष्टि से विचार करते हुए नीचे के तल्ले में गादी एवं ऊपरी मंजिल में उपाश्रय बनाने का निर्णय लिया ताकि लोगों का आना-जाना निरंतर चलता रहे और Maintainence भी होता रहे। निर्माण कार्य प्रारंभ होने के पश्चात कुछ सामाजिक कारणों से 17 वर्ष तक पुनः बंद हो गया। तदनन्तर साध्वीवर्याओं की प्रेरणा से निर्माण कार्य को पुनः गति प्राप्त हुई तथा चार मंजिला भव्य हवादार उपाश्रय निर्मित किया गया।
वर्तमान में इस पौशाल के नीचे की दो मंजिल व्यवसायिक कार्यों हेतु एवं ऊपर की दो मंजिल उपाश्रय के रूप में प्रयुक्त की जाती है। उपाश्रय रूप में उपयोगी हाल का निर्माण इतनी सूझ-बूझ से किया गया है कि वहाँ गर्मी हो या सर्दी पर