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42... प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
3. निर्विकृति = अरस, विरस, पूत, निस्नेह, यतिकर्म, त्रिपाद, निर्मद और श्रेष्ठ ।
4. आयम्बिल = अम्ल, सजल, आचाम्ल, कामघ्न, द्विपाद, धातुकृत, शात और एकान्न ।
5. उपवास = अनाहार, चतुष्पाद, युक्त, निष्पाप, उत्तम, गुरु, प्रशम और धर्म |
6. छट्ठ (निरन्तर दो दिन के उपवास) = पथ्य, पर, सम, दान्त और चतुर्धाख्या।
7. अट्ठम (निरन्तर तीन दिन के उपवास) = प्रमित, सुन्दर, कृत्य, दिव्य, मित्र और सिच।
8. चोला (निरन्तर चार दिन के उपवास) धार्य, धैर्य, बल, और काम्य । 9. पचोला (निरन्तर पाँच दिन के उपवास) = दुष्कर, निर्वृति, और मोक्ष । 10. निरन्तर छह दिन के उपवास = सेव्य, पवित्र, विमल ।
11. निरन्तर सात दिन के उपवास = जीव्य, विशिष्ट, विख्यात ।
12. निरन्तर आठ दिन के उपवास =
प्रवृद्ध, वर्द्धमान। 13. निरन्तर नौ दिन के उपवास = नव्य, रम्य, तारक । 14. निरन्तर दस दिन के उपवास
ग्राह्य, अन्तिम।
उपरोक्त तालिकाओं एवं यंत्रों के सन्दर्भ में यह स्पष्ट होना आवश्यक है कि इनमें कुछ तालिकाएँ पूर्वाचार्यों द्वारा कालक्रम में आए परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए उल्लिखित की गई हैं तथा कुछ प्रायश्चित्त दान संबंधी यन्त्र जीतसामाचारी के अनुसार कहे गये हैं। वर्तमान की श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में लगभग विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर वर्णित प्रायश्चित्त दान का ही अनुवर्त्तन किया जाता है।
•
लघुमास
गुरुमास लघुचौमासी
=
निशीथ टब्बा तथा जयाचार्य कृत झीणी चरचा, तात्त्विक ढाल 7 के आधार पर प्रायश्चित्तविधि - यन्त्र निम्न है -
प्रायश्चित्त
तप
भिन्नमास
प्रत्याख्यान
नीवि 25
पुरिमड्ढ 27
एकासन 30 आयंबिल 4
=
उपवास 25
उपवास 27
उपवास 30
उपवास 105
छेद
25
27
30
105