SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 40...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण यथा लघुस्वक प्रायश्चित्त प्राप्त है वह शुद्ध है, प्रायश्चित्त का भागी नहीं है तथा परिहार प्रायश्चित्त प्रतिपन्न मुनि को आलोचना देने मात्र से शुद्ध किया जाता है। • निशीथभाष्य चूर्णि में प्रायश्चित्त दान के कुछ प्रतीकाक्षर निम्न प्रकार है चउगुरु चउलहु सुद्धो, छल्लहु चउगुरग अंतिमो। - सुद्धो छग्गुरु, चउगुरु लहुओ...।। ङ्का, ङ्क, सु, र्पु, ङ्का, सु, म, ङ्का, 0। छि (ल)...छी(गु)...। ङ्क = चतुर्लघु, ङ्का = चतुर्गुरु = षड्लघु, ओ = षड्गुरु 0 = लघुमास, सु = शुद्ध छियाल = लघु, छीयागु = गुरु • व्यवहारभाष्य टीका में प्राप्त प्रायश्चित्त दान संबंधी कुछ सांकेतिक संज्ञाएँ निम्न हैं 2 नक्खत्ते भे पीला, सुक्के मासं तवं कुणसु... नक्षत्र, शुक्ल और कृष्ण- इन तीनों के सांकेतिक पद क्रमश: मास, लघुमास और गुरुमास के सूचक हैं। • दशवकालिक अगस्त्यचूर्णि में प्रायश्चित्तदान के सांकेतिक पद संख्यावाची अर्थ के रूप में बताये गये हैं वह तालिका निम्नांकित है प्रतीकाक्षर अंक प्रतीकाक्षर एका ल 3 लृका अंक . 13 Kahchaah gel RARAL t
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy