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जैन वाङ्मय में प्रायश्चित्त के प्रकार एवं उपभेद...39 • बृहत्कल्पभाष्य के अनुसार प्रायश्चित्त दान-यंत्र ___अपराधों एवं अपराधियों के भिन्नत्व के कारण भाष्यकार संघदासगणि ने प्रायश्चित्त की 9 कोटियाँ प्रतिपादित की है वह स्पष्टत: निम्न प्रकार हैं-60
व्यवहार प्रायश्चित्तपरिमाण तप 1. गुरुक एक मास का प्रायश्चित्त तेले-तेले के तप द्वारा
पूर्ण किया जाता है। 2. गुरुतरक चार मास का प्रायश्चित्त चोले-चोले के तप द्वारा
पूर्ण किया जाता है। 3. यथागुरुक छह मास का प्रायश्चित्त पंचोले-पंचोले के तप द्वारा
पूर्ण किया जाता है। 4. लघुक तीस दिन का प्रायश्चित्त बेले-बेले के तप द्वारा पूर्ण
करते हैं। 5. लघुतरक पच्चीस दिन का प्रायश्चित्त उपवास के तप द्वारा पूर्ण
करते हैं। 6. यथालघुक बीस दिन का प्रायश्चित्त आयंबिल तप के द्वारा पूर्ण
करते हैं। 7. लघुस्वक पन्द्रह दिन का प्रायश्चित्त एक स्थान (एकल ठाणा) से
पूर्ण करते हैं। 8. लघुस्वतरक दस दिन का प्रायश्चित्त ___पुरिमड्ढ तप के द्वारा पूर्ण
करते हैं। 9. यथालघुस्वक पाँच दिन का प्रायश्चित्त नीवि तप के द्वारा पूर्ण
करते हैं। .. इस यन्त्र में गुरुक, गुरुतरक आदि शब्द प्रायश्चित्त दान के प्रतीकाक्षर हैं। जब दण्ड दिया जाता है अथवा प्रायश्चित्त लिखा जाता है तब सांकेतिक अक्षर ही सुनाये या लिखे जाते हैं। उसके आधार पर उनका स्पष्ट बोध करवा देते हैं या गीतार्थ मुनि आदि श्रुत बल से स्वयं भी कर लेते हैं।
वस्तुतः प्रायश्चित्त एक गोपनीय विधि-प्रक्रिया है। सर्व सामान्य में इसका खुलासा नहीं किया जा सकता, किन्हीं आवश्यक परिस्थितियों में प्रतीकाक्षरों का ही उपयोग करते हैं।
यहाँ भाष्यकार ने दान यंत्र के अन्त में यह भी निर्दिष्ट किया है कि जिसे