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तप के भेद-प्रभेद एवं प्रकारों का वैशिष्ट्य...25 होता है कि बाह्य तप सिर्फ कायिक कष्ट मात्र ही नहीं है, उसका सम्बन्ध आभ्यन्तर तप से भी जुड़ा हुआ है। बाह्य तप के छह भेद निम्न हैं:
1. अनशन 2. ऊनोदरी 3. भिक्षाचरी 4. रस परित्याग 5. कायक्लेश और 6. संलीनता।
आभ्यन्तर तप के छह भेद ये हैं
1. प्रायश्चित्त 2. विनय 3. वैयावृत्य 4. स्वाध्याय 5. ध्यान और 6. व्युत्सर्ग। बाह्य तप के भेद-प्रभेदों का स्वरूप एवं उसके लाभ 1. अनशन तप ___ अनशन का सीधा अर्थ है - चारों प्रकार के आहार का त्याग करना। अशन अर्थात भोजन, अनशन अर्थात भोजन का त्याग। सभी तपों में अनशन का प्रथम स्थान है। इसका प्रमुख कारण है कि इस तप में अनादिकालीन आहार संज्ञा पर विजय प्राप्त करने का प्रबल पुरुषार्थ किया जाता है। आहार संज्ञा से विजित हुई चेतना शीघ्रमेव अनाहारक पद (मोक्षपद) का वरण कर लेती है। चतुर्गति में परिभ्रमण कर रही सभी आत्माओं को सबसे अधिक आहार संज्ञा ही परेशान करती है। आज मानव मुख्यत: उदरपूर्ति के लिए भाग-दौड़ कर रहा है। आहार प्रत्येक सांसारिक चेतना की प्राथमिक आवश्यकता है। इस तप के माध्यम से क्षुधा वेदनीय कर्म को तोड़ने एवं अनाहारक स्वभाव को प्रगट करने का उद्यम किया जाता है।
प्रकार- यह तप दो प्रकार का कहा गया है - 1. इत्वरिक और 2. यावत्कथिक। निश्चित समय की अवधि के लिए किया हआ आहार त्याग इत्वरिक अनशन तप कहलाता है। यह एक दिन अथवा दो घड़ी के आहार त्याग से लेकर छह मास तक के उपवास का होता है तथा यावज्जीवन के लिए किया हुआ आहार त्याग यावत्कथिक अनशन तप कहलाता है। इसमें समय की मर्यादा नहीं रहती है।
(i) इत्वरिक अनशन तप- उत्तराध्ययनसूत्र में इत्वरिक अनशन तप छह प्रकार का बतलाया गया है। उनके नाम ये हैं - 1. श्रेणी तप 2. प्रतर तप 3. घन तप 4. वर्ग तप 5. वर्ग-वर्ग तप 6. प्रकीर्ण तप।