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________________ 216...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक तप साधना की आवश्यक चर्चाएँ की गयी हैं। यदि तप-विधियों को लेकर कहना चाहें तो सर्वप्रथम अन्तकृतदशासूत्र में रत्नावली, मुक्तावली, कनकावली, भद्रोत्तर प्रतिमाएँ आदि किञ्चित तपों का सविधि वर्णन प्राप्त होता है जिन्हें वर्तमान में आचरित करना प्रायः अशक्य है। तत्पश्चात् दशाश्रुतस्कन्ध में बारह भिक्षु प्रतिमाओं का, उपासकदशा में ग्यारह उपासक प्रतिमाओं का, उत्तराध्ययनसूत्र में श्रेणी तप आदि का समुचित उल्लेख किया गया है। जैनागमों में वर्णित किञ्चित् तप दुष्कर हैं तो कुछ वर्तमान में बहु प्रचलित भी हैं। इनकी आगमिक टीकाओं में भी तत्सम्बन्धी विशद वर्णन परिलक्षित होता है। ___ यदि पूर्ववर्ती आचार्य रचित ग्रन्थों के परिप्रेक्ष्य में मनन करें तो हमें आचार्य हरिभद्र (वि. 8वीं शती) के पंचाशकप्रकरण में लगभग 30 तपों का विधिवत विवरण प्राप्त होता है। उसके बाद आचार्य नेमिचन्द्र रचित प्रवचनसारोद्धार (वि. 10वीं शती), तिलकाचार्य सामाचारी (वि. 13वीं शती), सुबोधासामाचारी (वि. 12वीं शती), विधिमार्गप्रपा (14वीं शती), आचारदिनकर (15वीं शती) इत्यादि में क्रमश: बढ़ती हुई संख्या में तप विधियों का वर्णन किया गया है। आचारदिनकर ने तो समग्र तपों को तीन भागों में भी वर्गीकृत किया है। इन्हीं उक्त ग्रन्थों के आधार पर अब तक कई संकलित पुस्तकें भी सामने आई हैं जिनमें देश-काल के अनुसार बहुत से नये तपों का भी समावेश कर दिया गया है। ___यदि भारतीय-परम्परा की दृष्टि से अवलोकन करें तो विश्व की मूल नींव के रूप में प्रवाहित जैन, हिन्दू व बौद्ध त्रिविध धाराओं में तप का यथोचित स्वरूप एवं महिमा गान का चित्रण उपस्थित होता है। इस तरह तपश्चरण प्राणी मात्र की निजी सम्पदा है। इसका प्रयोग मोक्षार्थी जीवों द्वारा प्रत्येक कालखण्ड में किया जाता है और यह विश्व की तमाम संस्कृतियों में अल्पाधिक रूप से ही सही परिव्याप्त है। उद्यापन क्या, क्यों और कब? संस्कृत व्याकरण के अनुसार उद्+यम् से 'उद्यम' शब्द निष्पन्न है और उसी का प्राकृत रूप ‘उज्जम' बनता है। यह उद्यापन शब्द प्राकृत के 'उज्जमण' शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है। उद्यापन को लोक व्यवहार में ‘उजमणा' कहते हैं।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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