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________________ तपोयोग का ऐतिहासिक अनुशीलन एवं तुलनात्मक अध्ययन...217 किये हुए तप का सम्यक् प्रकार से अनुमोदन करना, उसे शोभित करना, कीर्तित करना, प्रशंसित करना उजमणा कहलाता है। एक जगह कहा गया है कि चैत्ये यथास्यात्कलशाधिरोपे, भुक्तः परं पूगफलादि दानम् । .. स्थालेऽक्षतानां च फलोपरोप, उद्यापनं तद्वदिहास्तु सत्त ।। जिस प्रकार चैत्य (जिनालय) के निर्माण के पश्चात् कलश चढ़ाया जाता है, भोजन के पश्चात मुखवास आदि दिया जाता है, अक्षत के थाल पर फल रखा जाता है वैसे ही तप के पूर्ण होने पर उसके मंगल के रूप में उद्यापन करना आवश्यक है। उपाध्याय वीरविजयजी ने लिखा है कि उजमणाथी तपफल वाधे, इम भाखे जिनरायो ज्ञान गुरु उपकरण करावो, गुरुगम विधि विरचायो रे महावीर जिनेश्वर गायो .............. उद्यापन से तप के फल में अभिवृद्धि होती है। तद्हेतु गुरुगम से विधिपूर्वक ज्ञान और गुरु के उपकरण करवाने चाहिए और तप का उद्यापन सम्यक् प्रकार से करना चाहिए, ऐसा परम पिता महावीर स्वामी कहते हैं। उद्यापन की मूल्यवत्ता को दिग्दर्शित करते हुए पं. पद्मविजयजी लिखते हैं कि उजमणा तप केरा करतां, शासन सोह चढ़ाया हो वीर्य उल्लास वधे तेणे कारण, कर्म निर्जरा पाया तपस्या करतां हो, के डंका जोर बजाया हो।। उद्यापन करने से शासन शोभा में अभिवृद्धि होती है, वीर्योल्लास (आत्मिक उत्साह) बढ़ता है और उससे कर्मों की निर्जरा होती है। भगवान महावीर ने कितनी घोर तपश्चर्या की? साढ़े बारह वर्ष तक मौन में रहे, न बैठे, न सोये और न ही निद्रा ली। उन्होंने ध्यान और तपश्चर्या की अग्नि शिखा को इतना तीव्र रूप में प्रगट किया कि कर्म जलकर खाक हो गये और पांचवाँ ज्ञान केवलज्ञान प्रकट हो गया। ऐसे उग्र तपश्चर्या के परिणाम स्वरूप केवलज्ञान को प्राप्त भगवान महावीर के चरण-कमलों में हमारा कोटिश: वन्दन हो, क्योंकि वीर प्रभु ने घोर तपश्चर्या द्वारा केवलज्ञान का डंका जोर से बजाया है। वस्तुत: उद्यापन तपश्चर्या की अनुमोदना का ही एक कार्य है। उद्यापन
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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