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158... तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक
यहाँ यह उल्लेख करना भी आवश्यक है कि आज का व्यस्त जीवन जीने वाले कई लोग प्रश्न करते हैं कि हम तपस्या तो फिर भी कर सकते हैं पर इन क्रियाओं के लिए हमारे पास समय नहीं है या इतनी बड़ी क्रियाओं में हमारा मन नहीं लगता? तो ऐसे लोग जो सही में मुम्बई जैसी फास्ट लाइफ जीते हैं, जहाँ सुबह पांच बजे से ही उन्हें काम पर निकलना पड़ता है और बाद में माला आदि फेरने का भी समय नहीं रहता, वे ज्ञानी गुरु भगवन्तों द्वारा मार्गदर्शन प्राप्त कर परिस्थिति सापेक्ष वर्तन कर सकते हैं । परन्तु जो लोग मात्र बड़ी क्रियाओं के नाम पर क्रिया नहीं करते और ऐसे ही टेलीविजन आदि देखकर समय बिताते हैं, उनके लिए तपस्या करना मात्र भूखे रहना है। ऐसी तपस्या शारीरिक लाभ भले दे दें पर मानसिक या आध्यात्मिक प्रगति में सहायक नहीं बनती तथा शारीरिक दृष्टि से भी उतनी लाभदायी नहीं होती ।
तपस्या में देववन्दन आवश्यक क्यों ?
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक - परम्परा में तप के साथ देववन्दन करना अनिवार्य माना गया है। वह देववन्दन क्या और क्यों किया जाता है ? तथा इसे कितनी बार करना चाहिए ?
चैत्यवन्दन भाष्य के अनुसार पांच शक्रस्तव ( णमुत्थुणसूत्र) एवं दो स्तुति युगल के द्वारा तीर्थङ्कर परमात्मा का जो उत्कृष्ट चैत्यवन्दन किया जाता है, यही देववन्दन कहलाता है। देववन्दन एक शुभ अनुष्ठान है। इस क्रिया के द्वारा मूलतः अरिहन्त परमात्मा को वन्दन एवं उनके गुणों का स्मरण करते हैं। अरिहन्त प्रभु की कृपा से ही तप जैसी कठिन साधना संभव है। दुनियाँ में सर्वश्रेष्ठ पुरुष अरिहन्त परमात्मा ही होते हैं अतः उनके नाम सुमिरण एवं आराधना से समस्त कार्य सिद्ध हो जाते हैं। जिसके निमित्त से कार्य सिद्धि हो उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना, उपकृत होना, अहोभाव जागृत करना, लौकिक कर्त्तव्य भी है। देववन्दन कृतज्ञता ज्ञापन का भी सूचक है । देववन्दन का दूसरा फलितार्थ है कि यह एक परमात्म भक्ति का उपक्रम है। भक्ति करने से परमात्मा का गुणानुराग एवं वैसे ही गुणों का विकास हमारे भीतर भी होता है। भक्ति से एक धनात्मक ऊर्जा (पॉजिटिव एनर्जी) अथवा विधेयात्मक शक्ति प्राप्त होती है तथा मानसिक शान्ति की अनुभूति होती है।
देववन्दन कितनी बार किया जाये ? इस सम्बन्ध में ऐसा है कि कई तपों