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________________ तप साधना की उपादेयता एवं उसका महत्त्व.... .157 क्लेश आदि उत्पन्न होते हों, ऐसे समय में विवेक रखते हुए स्वयं के लिए ऐसे कार्य रखने चाहिए जिसमें अल्प हिंसा हो, कार्य करते हुए भी शुभ चिन्तन में प्रवृत्त रहा जा सके तथा भावों की शुद्धता एवं निर्मलता रह सके। तप की (Quantity) में ही नहीं (Quality) में भी वृद्धि होनी चाहिए। तपस्या में खमासमण, जाप, कायोत्सर्ग, साथिया, प्रदक्षिणा आदि क्यों ? जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक - परम्परा में अधिकांश तपस्याओं के दौरान निश्चित संख्या के अनुसार खमासमण, प्रदक्षिणा, साथिया, कायोत्सर्ग, जाप आदि करने का विधान है। इसमें निम्न रहस्य अन्तर्भूत होने चाहिए • तपस्या के दिनों में बाह्य कार्यों से निवृत्ति मिल पाने के कारण स्वभाव से जुड़ने का एक सुन्दर अवसर उपस्थित होता है उसका सदुपयोग करने हेतु कायोत्सर्ग के माध्यम से ध्यान रूपी आभ्यंतर तप में प्रवृत्त होते हैं। ध्यान को मोक्ष का अनन्तर कारण माना गया है। जहाँ अनशन आदि तप के द्वारा शारीरिक राग को समाप्त करने का प्रयास किया जाता है वहीं कायोत्सर्ग के माध्यम से राग भाव को क्षीण कर ज्ञाता - द्रष्टा में रहने का प्रयत्न किया जाता है। आत्मा का अन्तिम लक्ष्य एवं तपस्या का मुख्य ध्येय मोक्ष है उसी की सम्प्राप्ति हेतु कायोत्सर्ग का विधान किया गया है। • पूर्वाचार्यों के मतानुसार किसी भी तपाराधना की सफलता के लिए कम से कम 20 माला यानी 2000 का जाप करना आवश्यक है। दूसरा कारण यह है कि किसी एक मन्त्र पर चित्त को स्थिर करने से एकाग्रता बढ़ती है, मन का बाहरी भटकाव कम होता है तथा आन्तरिक शान्ति एवं समाधि की प्राप्ति होती है। इससे मन्त्र सिद्धि भी होती है। • खमासमण देने से विनय गुण की प्राप्ति, अहंकार का दमन एवं भक्ति योग में वृद्धि होती है। पूज्य के सम्मुख झुकने से लघुता का गुण प्रकट होता है । शारीरिक शिथिलता दूर होती है। शरीर के साथसाथ मन भी कोमल बनता है। वीतराग परमात्मा के प्रति समर्पण एवं श्रद्धा भाव कर्म निर्जरा और अभीष्ट सिद्धि में सहायक बनते हैं। • प्रदक्षिणा के द्वारा भव भ्रमण से छुटकारा पाने के भाव उत्पन्न होते हैं। उस समय तपवाही सोचता है कि मन्दिर की फेरी देना भी कठिन कार्य जैसा लग रहा है तब संसार में परिभ्रमण करना कितना पीड़ादायक है ? इस तरह के भाव प्रगट होने पर निजता में को पाने की ओर अग्रसर होता है। प्रभुता
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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